💡बिजली के आविष्कारक - महर्षि अगस्त्य

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 बिजली के आविष्कारक - महर्षि अगस्त्य


राव साहब कृष्णाजी वझे ने १८९१ में विज्ञान संबंधी ग्रंथों की खोज के दौरान उन्हें उज्जैन में दामोदर त्र्यम्बक जोशी के पास अगस्त्य संहिता के कुछ पन्ने मिले। इस संहिता के पन्नों में उल्लिखित वर्णन को पढ़कर नागपुर में संस्कृत के विभागाध्यक्ष रहे डा. एम.सी. सहस्रबुद्धे को आभास हुआ कि यह वर्णन डेनियल सेल से मिलता-जुलता है। अत: उन्होंने नागपुर में इंजीनियरिंग के प्राध्यापक श्री पी.पी. होले को वह दिया और उसे जांचने को कहा। श्री अगस्त्य ने अगस्त्य संहिता में विधुत उत्पादन से सम्बंधित सूत्रों में लिखा:


 संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌ छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:

दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:

संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्


अर्थात: एक मिट्टी का पात्र (Earthen pot) लें, उसमें ताम्र पट्टिका (copper sheet)डालें तथा शिखिग्रीवा डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगायें, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो, उससे मित्रावरुणशक्ति का उदय होगा।


उपर्युक्त वर्णन के आधार पर श्री होले तथा उनके मित्र ने तैयारी चालू की तो 

उपर्युक्त वर्णन के आधार पर श्री होले तथा उनके मित्र ने तैयारी चालू की तो शेष सामग्री तो ध्यान में आ गई, 


परन्तु शिखिग्रीवा समझ में नहीं आया। “शिखिग्रीवा” का अर्थ मोर की  गर्दन के रंग जैसा पदार्थ “कॉपरसल्फेट” है। फिर उन्होंने उस आधार पर एक सेल बनाया

और डिजीटल मल्टीमीटर द्वारा उसको नापा। परिणामस्वरूप 1.138 वोल्ट तथा 23 mA धारा वाली विद्युत उत्पन्न हुई


आगे श्री अगस्त्य जी लिखते है:


अनने जलभंगोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु।

एवं शतानां कुंभानांसंयोगकार्यकृत्स्मृत:॥


सौ कुंभों की शक्ति का पानी पर प्रयोग करेंगे, तो पानी अपने रूप को बदल कर प्राण वायु (Oxygen) तथा उदान वायु (Hydrogen) में परिवर्तित हो जाएगा।


आगे लिखते है:


वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके

उदान : स्वलघुत्वे बिभर्त्याकाशयानकम्‌।


(अगस्त्य संहिता शिल्प शास्त्र सार)


उदान वायु (H2) को वायु प्रतिबन्धक वस्त्र (गुब्बारा)  में रोका जाए तो यह विमान विद्या में काम आता है।


राव साहब वझे, जिन्होंने भारतीय वैज्ञानिक ग्रंथ और प्रयोगों को ढूंढ़ने में अपना जीवन लगाया, 

उन्होंने अगस्त्य संहिता एवं अन्य ग्रंथों में पाया कि विद्युत भिन्न-भिन्न प्रकार से उत्पन्न होती हैं, इस आधार पर उसके भिन्न-भिन्न नाम रखे गयें है।


१) तड़ित्‌: रेशमी वस्त्रों के घर्षण से उत्पन्न।

(२) सौदामिनी: रत्नों के घर्षण से उत्पन्न।

(३) विद्युत: बादलों के द्वारा उत्पन्न।

(४) शतकुंभी: सौ सेलों या कुंभों से उत्पन्न।

(५) हृदनि: हृद या स्टोर की हुई बिजली।

(६) अशनि: चुम्बकीय दण्ड से उत्पन्न।


अगस्त्य संहिता में विद्युत्‌ का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पालिश चढ़ाने की विधि निकाली। अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।


अब मजे की बात यह है कि हमारे ग्रंथों को विदेशियों ने हम से भी अधिक पढ़ा है। इसीलिए दौड़ में आगे निकल गये और सारा श्रेय भी ले गये।

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