कालनेमि (साधु वेश में राक्षस) इनकी पहचान कर इन्हें दुनिया के सामने खुद सन्त समाज को ही लाना होगा। और निर्दोष सन्त जिन्हें षड्यंत्रों में फंसाया जाता है उनके समर्थन में पूरी शक्ति से आना होगा।
👉कलनेमियों की पहचान आवस्यक है ये समाज के लिए एक बहोत भारी खतरा सिद्ध हो सकते हैं।
‘ _लखि सुबेष जग बंचक जेऊ। बेष प्रताप पूजिअहिं तेऊ॥_
_उघरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू।’_
भावार्थ:- बहुरूपिए भी यदि साधु का वेश धर लें तो संसार उनके वेश के प्रभाव से उनकी वंदना करता है, परंतु एक न एक दिन उनकी प्रकृति सामने आ ही जाती है। इस तरह के कालनेमियों का वेश तो बड़े-बड़े विद्वानों को भी भ्रमित कर देता है। इसलिए तमाम निश्चल संतों के बीच यदि कुछ अपराधियों द्वारा धारण किया गया केसरिया बाना और साधु वेश कुछ लोगों को भ्रमित कर रहा है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं।
👉अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत के मामले में जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उनसे एक बात और साफ हो गई है कि समाज को ऐसे अपराधियों को पहचानना होगा जो साधु वेश में इस दुनिया को ही नहीं बल्कि अपने गुरु को भी प्रताड़ित कर रहे हैं। वे अपने स्वार्थ के चलते कोई भी हरकत करने को तत्पर हैं। लेकिन जब उनके गुरु और आश्रम के लोग इन साधु वेशधारी अपराधियों को तब तक नहीं पहचान पाते, जब तक उनके कारनामों का काला चिट्ठा समाज के सामने नहीं आ जाता तो फिर आम जनों की क्या बात की जाए।
महंत नरेंद्र गिरि जी की मृत्यु के मामले पर जो कहानी सामने आ रही है, वह आज की नहीं है। यह सिलसिला पुराना है। ऐसे कारनामों से धर्मीक स्थलों की गरिमा दूषित होती है और धर्मद्रोहियों को सुनहरा अवशर मिलता है हिन्दू धर्म और सन्तों को बदनाम करने का।
अनेकों साधु-संतों को षड्यंत्र रच कर फसाया जाता है और फिर उनके नाम का सहारा लेकर धर्म को और संपूर्ण संत समाज को बदनाम किया जाता है इस पर भी संत समाज को ध्यान देना होगा।
👉तमाम अपराध करने के बाद ऐसे कई कालनेमि साधु वेश धारण कर तीर्थों में जाकर छुप जाते हैं ताकि गिरफ्तारी से बच सकें। पिछले दिनों अयोध्या में एक साधु वेशधारी को पटना पुलिस पकड़ कर ले गई, जिसे वह 10 साल से तलाश रही थी। वह अपराधी यहां महंत बना बैठा था। अयोध्या ही नहीं, तमाम धार्मिक स्थलों में अपराधी शरण लेते रहे हैं। कुख्यात डकैत शिव कुमार उर्फ ददुआ बरसात के दिनों में चित्रकूट में भगवा वेश धारण कर छुप जाता था।
नरेंद्र गिरि जी ने इस मुद्दे को उठाया था। ऐसे लोगों की सूची जारी की थी, जो संत के बीच में असंतों का काम कर रहे थे। लेकिन विडंबना देखिए कि वह अपने ही आश्रम में घुसे साधु वेशधारी अपराधियों को नहीं पहचान पाए। जब तक पहचाना, बहुत देर हो चुकी थी।
देश में आज साधु समाज संकट में है। उनके बीच कुछ बहुरूपिये घुस आए हैं। कुछ जादूगरी दिखाकर लोगों को ठगने वाले और कुछ साधु वेश में असाधु। क्या संत समाज की जिम्मेदारी नहीं है कि वह साधु वेशधारी उन लोगों को किनारे लगाए जिन्हें ना शास्त्रों का ज्ञान है, ना वेदों का? यह सवाल तो बनता है कि जब महंत नरेंद्र गिरि पर उन्हीं का शिष्य कीचड़ उछाल रहा था, उस समय साधु समाज कहां था? धर्म के नाम पर जो बड़ी-बड़ी दुकानें खुल गई हैं, उसका जिम्मेदार कौन है?
अब अत्यंत आवस्यक है कि सन्त समाज पूर्ण रूप से सक्रिय हो और कलनेमियों को पहचानकर उन्हें दुनिया के सामने लाये और सन्त समाज से निष्काषित करे... ऐसा न करने से सन्त समाज की छवि धूमिल होती है, हिन्दू विरोधी, विदेशी पैसों ओर पलने वाले मीडिया वाले, वामपंथी इन सबको अवशर मिलता है हिन्दू धर्म को बदनाम करने का।
विद्वान संतों की आज भी कोई कमी नहीं। वर्ष 1954 में अखाड़ा परिषद का गठन हुआ। उसका उद्देश्य अखाड़ों के बीच एकता और सामंजस्य स्थापित करना था। इसके बहुत ही अच्छे परिणाम सामने आए। अब समय आ गया है जब संत समाज किसी ऐसी संस्था का गठन करे, जो संतों के बीच असंतों को तलाश कर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाए। यदि समाज किसी मुद्दे पर मौन रहता है तो उसकी मजबूरी को समझा जा सकता है, लेकिन उस संत समाज के सामने कौन सी मजबूरी है, जिसने बादशाहों-राजाओं को खरी-खरी सुना दी।
जब फतेहपुर सीकरी में बादशाह अकबर ने संत कुंभन दास को बुलाया और विदाई के समय धन-दौलत देनी चाही तो उन्होंने यही बात कही थी कि हम कछु लेंगे नहीं, बस एक ही बात मांग रहे हैं कि हमें आगे से बुलाइयो ना। जगद्गुरु शंकराचार्य, रामानंदाचार्य, कबीर, तुलसी, सूर और मीरा की संत परंपरा से ओत-प्रोत रहा है यह समाज। इससे उन्हें बाहर निकाला जाना चाहिए, जो साधु वेशधारी बन समाज को भ्रमित कर रहे हैं। इस धर्म ध्वजा का वाहक साधुओं को ही बनना पड़ेगा।
Good information.
ReplyDeleteबहुत गंभीर विषय है, सतर्कता व सावधानी अतिआवश्यक है, जय श्री राम 🚩
ReplyDelete🚩जय श्री राम 🚩
ReplyDelete🚩जय हिन्दू राष्ट्र🚩