सनातन धर्मके 10 सिद्धांत और उनका रहस्य
ब्रह्म ही है ‘सत्य’
ब्रह्म ही सत्य है। वह अजन्म, अप्रकट और निर्विकार है। ब्रह्म को ही ईश्वर, परमपिता, परमात्मा, परमेश्वर और प्रणव कहा जाता है। मूलत: ईश्वर एक और केवल एक है। दूसरा कोई नहीं। उस ब्रह्म की किसी भी प्रकार की कोई मूर्ति नहीं बनाई जा सकती वह अमुर्त सत्य है।
आत्मा है ‘अरज अमर’
ब्रह्मांड में आत्माएं असंख्य और अनंत है। आत्मा सनातन, अव्यक्त, अजर, अमर, अप्रमेय और निर्विकार है। कर्मों के अनुसार आत्मा जन्म-मरण के चक्र में स्वयं निर्लिप्त रहते हुए अगला शरीर धारण करती है। जन्म-मरण का सांसारिक चक्र तभी खत्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष मिलता है।
आत्मा का अंतिम लक्ष्य ‘मोक्ष’
वैदिक सनातन धर्म की महत्वपूर्ण देन में से एक मोक्ष की धारणा है। मोक्ष का अर्थ होता है पूर्ण मुक्ति। आत्मज्ञान या ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना ही मोक्ष है। इसे प्राप्त करने के लिए तीन उपाय है:- अभ्यास, ध्यान और जागृति। मोक्ष तो ध्यान और साधना से ही प्राप्त होता है।
संध्यावंदन है प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य
संध्या वंदन को संध्योपासना भी कहते हैं। मंदिर में जाकर संधि काल में ही संध्या वंदन की जाती है। संध्योपासना के चार प्रकार है- 1.प्रार्थना, 2.ध्यान, 3.कीर्तन और 4.पूजा-आरती। व्यक्ति की जिस में जैसी श्रद्धा है वह वैसा करता है।
तीर्थ करना है पुण्य कर्म
तीर्थ और तीर्थयात्रा का बहुत पुण्य है। तीर्थों में चार धाम, ज्योतिर्लिंग, अमरनाथ, शक्तिपीठ और सप्तपुरी की यात्रा का ही महत्व है।
सामूहिक उत्सव’ मनाना जरूरी
उत्सव, पर्व और त्योहार सभी का अलग-अलग अर्थ और महत्व है। प्रत्येक ऋतु में एक उत्सव है। उन त्योहार, पर्व या उत्सव को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथ, धर्मसूत्र, स्मृति, पुराण और आचार संहिता में मिलता है।
संस्कार ही है सभ्य समाज का आईना
संस्कारों के प्रमुख प्रकार सोलह बताए गए हैं जिनका पालन करना हर हिंदू का कर्तव्य है। प्रत्येक हिन्दू को उक्त संस्कार को अच्छे से नियमपूर्वक करना चाहिए। यह मनुष्य के सभ्य और हिन्दू होने की निशानी है।
पाठ करना:-
वेदो, उपनिषद या गीता का पाठ करना या सुनना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है। उपनिषद और गीता का स्वयंम अध्ययन करना और उसकी बातों की किसी जिज्ञासु के समक्ष चर्चा करना पुण्य का कार्य है।
धर्म प्रचार:-
धर्म की प्रशंसा करना और धर्म के बारे में सही जानकारी को लोगों तक पहुंचाना प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य होता है। धर्म प्रचार में वेद, उपनिषद और गीता के ज्ञान का प्रचार करना ही उत्तम माना गया है। प्रत्येक व्यक्ति को धर्म प्रचारक होना जरूरी है।
धर्म-कर्म के कार्य करना जरूरी:-
धर्म-कर्म का अर्थ यह कि हम ऐसा कार्य करें जिससे हमारे मन और मस्तिष्क को शांति मिले और हम मोक्ष का द्वार खोल पाएं। साथ ही जिससे हमारे सामाजिक और राष्ट्रिय हित भी साधे जाते हों।
*खोडाभाई_भगवा ध्वज रक्षक समूह*
जय श्री राम
ReplyDelete"वसुधैवकुटुंबकम्" का विश्वासी,अत्याचार का विरोधी
ReplyDeleteहरे कृष्ण हरे राम🙏❤️🥰
ReplyDeleteSahi baat hai
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteआत्मा यदि निर्विकार है तो वह जन्म मरण के बंधन में क्यों बंधी हुई है अर्थात उसे अलग-अलग शहरों में प्रवेश क्यों करना पड़ता है
ReplyDeleteअलग-अलग शरीरों में क्यों प्रवेश करना पड़ता है और क्यों मृत्यु लोक में दुख भोगना पड़ता है
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