मां दुर्गा की विभिन्न मुद्राएं
मुख्य मुद्रा का विस्तृतिकरण
१.गालिनी मुद्रा दोनों हथेलियों को एक दूसरे पर रक्खे। कनिष्ठिकाओं को इस प्रकार मोड़े कि वे अपनी-अपनी हथेलियों को स्पर्श करें। तर्जनी, मध्यमा और अनामिका उँगलियाँ सीधी और परस्पर मिली रहें। यह शङ्ख बजाने बजाने की गालिनी मुद्रा हैं।
२.कुम्भमुद्रा दाहिने अंगूठे को बाँयें के ऊपर रक्खे इसी अवस्था में दोनों हाथ की मुट्ठियाँ बाँधे परन्तु दोनों मुट्ठियों के बीच थोड़ी जगह होनी चाहिये। यह कुम्भ मुद्रा हैं।
३.कुम्भमुद्रा द्वितीया दोनों हाथ को मिलाकर एक ही मुट्ठी बनाये और दोनों अंगूठों को मिलाकर तर्जनी के अग्रभाग पर रक्खे। यह द्वितीय कुम्भ मुद्रा हैं जो साधक की हर प्रकार से रक्षा करती है।
4.प्रार्थनामुद्रा दोनों हाथों को फैलाये हुए हृदय पर रक्खे। यह प्रार्थना मुद्रा हैं।
५ अंजलिग्राफी दोनों हाथों को मिलाकर अंजलि बनाएं। यह वासुदेव को प्रिय मुद्रा है।
६.कालकर्णी मुद्रा दोनों हाथों की बँधी मुट्ठियों को एक दूसरे से मिलाकर दोनों अंगूठों को ऊपर उठाये। इस प्रकार हाथों को अपने सामने रक्खे। यह कालकर्णी मुद्रा है।
७.विस्मयमुद्रा दाहिने हाथ की कसकर मुट्ठी बनाकर उसकी तर्जनी से नाक को हल्के से दबाये। यह विस्मय मुद्रा हैं जो विस्मयावेश को व्यक्त करती हैं।
८.नादमुद्रिका दाहिने अँगूठे को बाँयी मुट्ठी में बन्द करे। यह नाद मुद्रा है।
९.बिन्दुमुद्रा तर्जनी और अँगूठे के अग्रभाग को मिलाये। यह बिन्दु मुद्रा हैं।
१०.संहारमुद्रा अधोमुख बाँयें हाथ को ऊर्ध्वमुख दाहिने हाथ पर रक्खे। दोनों हाथ की दोनों हाथ की उँगलियों को परस्पर ग्रथित करे। इस प्रकार संयोजित हाथों को घुमाकर बिल्कुल उलट देवें। देवता के विसर्जन के समय प्रयुक्त होने वाली यह संहार मुद्रा है।
११.मत्स्यमुद्रा बाँयी हथेली को दाहिने हाथ के पृष्ठ भाग पर रक्खे और फिर दोनों अंगूठों को हथेली को पार करते हुये मिलाये यह मत्स्य मुद्रा हैं।
१२.कूर्ममुद्रा बाँयी तर्जनी को दाहिनी कनिष्ठिका से मिलाये पुनः दाहिनी तर्जनी को बाँयें अँगूठे से मिलाये और दाहिने अँगूठे को ऊपर उठा दे। अब बाँयें हाथ की मध्यमा और अनामिका को दाहिने हाथ की हथेली से लगाये।
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