दीक्षा लेने का समय

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 दीक्षा लेने का समय



👉१ मास मंत्र की दीक्षा, वैशाख, श्रावण, आश्विन, कार्त्तिक, फाल्गुन या मार्गशीर्ष मास में देनी चाहिये, फाल्गुन, मार्गशीर्ष तथा ज्येष्ठ में दी जाने वाली दीक्षा मध्यम फल देने वाली होती है। आषाढ़ व श्रावण मास में दी जाने वाली दीक्षा कनिष्ठ फल देने वाली होती है। अधिक मास के सभी महीने तथा पौष और भाद्रपद दीक्षा के लिए निन्दित कहे गये है।


👉२ दीक्षापक्ष शुक्लपक्ष की दीक्षा शुभ होती है और कृष्णपक्ष में पंचमी तक दीक्षा दी जाती है।  सम्पति कामी के लिये शुक्लपक्ष और मुक्तिकामी के लिये कृष्ण पक्ष प्रशस्त है।


👉३ दीक्षादिवस रविवार को दीक्षा लेने से धन लाभ, सोमवार में शांति, मंगलवार में आयु नाश, बुध में सौन्दर्य लाभ, गुरु में ज्ञान लाभ, शुक्र में सौभाग्य लाभ और शनिवार को दीक्षा लेने से यश की हानि होती है।


👉४ दीक्षा तिथि आगम कल्पद्रुम में लिखा है कि प्रतिप्रदा में ज्ञान नाश, द्वितीया में ज्ञान लाभ, तृतीया में पवित्रता, चतुर्थी में में धन नाश, पंचमी में बुद्धि वृद्धि, षष्ठी में ज्ञान क्षय, सप्तमी में सुख, अष्टमी में बुद्धि नाश, नवमी में देह क्षय होता है


👉५ दीक्षा नक्षत्र अश्वनी में सुख, भरणी में मृत्यु, कृत्तिका में दुःख, रोहिणी में वाक्पतित्व, मृगशीर्ष में सुख प्राप्ति, आर्द्रा में बन्धु नाश, पुनर्वसु में धन सम्पत्ति, पुष्य में शत्रु नाश, आश्रूषा में मृत्यु, मघा में दुःख नाश, और पूर्व फाल्गुनी में सौन्दर्य लाभ, उत्तर फाल्गुनी में ज्ञान, हस्त में धन, चित्रा में ज्ञानवृद्धि, स्वाति में शत्रुनाश, विशाखा में सुख, अनुराधा में बंधु वृद्धि, जेष्ठा में सुतहानि, मूल में कीर्ति वृद्धि,पूर्वाषाढा व उत्तराषाढा में कीर्ति, श्रवण में दुःख, धनिष्ठा में दारिद्रय, शतभिषा में ज्ञान, पूर्वभाद्रपद में सुख, रेवती में कीर्ति लाभ होता है। शिव व वह्नि मंत्र लेने में आर्द्रा व कृत्तिका में दोष नहीं है। जिस मंत्र में "र" आता है वह वह्नि मंत्र कहलाता है जैसे ह्रीं श्रीं आदि।


👉६ दीक्षा योग रत्नावली में कहा गया है कि प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्यः, शोभन, धृति, वृद्धि, ध्रुव, सुकर्म, साध्य, शुक्ल, हर्षण, वरियान, शिव, ब्रह्मा, सिद्ध और इन्द्र दीक्षा के लिए उपयुक्त 16 योग हैं।


👉७ दीक्षा करण वव, कौलव, तैतिल, और वणिज शुभ है।


👉८ दीक्षा लग्न विष्णु मंत्र  के संबन्ध में स्थिर लग्न, शिव मंत्र में चर लग्न, और शक्ति मंत्र में द्विस्वभाव लग्न शुभ है। लग्न के तृतीय, षष्ठ और एकादश स्थान में पाप ग्रह, लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम, नवम और पंचम में शुभग्रह होने पर मंत्र लेना प्रशस्त है किन्तु वक्र ग्रह दीक्षा के लिये 1 अनिष्ट कारक है।


Source- दीक्षा रत्नावली

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