अवांछित लोगों को मंदिरों में प्रवेश क्यों नहीं करने देना चाहिए?

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 अवांछित लोगों को मंदिरों में प्रवेश क्यों नहीं करने देना चाहिए?




यदि आप किसी हिंदू मंदिर में गए हो तो वहां गर्भ-गृह का नाम सुना होगा। मंदिर के अंतरस्थ भाग को गर्भ कहते हैं। शायद आपने ध्यान न दिया हो कि उसे गर्भ क्यों कहते हैं?


अगर आप मंदिर की ध्वनि का उच्चार करेंगे, हरेक मंदिर की अपनी ध्वनि है, अपना मंत्र है, अपने इष्ट देवता हैं और उस इष्ट देवता से संबंधित मंत्र हैं, अगर उस ध्वनि का उच्चारण करेंगे तो पायेंगे कि उससे वहां वही ऊष्णता पैदा होती है जो मां के गर्भ में पाई जाती है। यही कारण है कि मंदिर के गर्भ को मां के गर्भ जैसा गोल और बंद, (करीब करीब बंद) बनाया जाता है। उसमें एक ही छोटा सा द्वार रहता है।


जब ईसाई पहली बार भारत आए और उन्होंने हिंदू मंदिरों को देखा तो उन्हें लगा कि ये मंदिर तो बहुत अस्वास्थ्यकर हैं,उनमें खिड़कियां नहीं हैं, सिर्फ एक छोटा सा दरवाजा है। लेकिन मां के गर्भ में भी तो एक ही द्वार होता है और उसमें भी हवा के आने जाने की व्यवस्था नहीं रहती। यही वजह है कि मंदिर को ठीक मां के पेट जैसा बनाया जाता है; उसमें एक ही दरवाजा रखा जाता है।


अगर आप किसी ऐसी ध्वनि का उच्चार करो जो आपको प्रीतिकर है, जिसके लिए आपके हृदय में भाव है, तो आप अपने चारों ओर एक ध्वनि गर्भ निर्मित कर लेंगें। अत: इसे खुले आकाश के नीचे करना अच्छा नहीं है। आप बहुत कमजोर हो; आप अपनी ध्वनि से पूरे आकाश को नहीं भर सकते। एक छोटा कमरा इसके लिए अच्छा रहेगा। और अगर वह कमरा आपकी ध्वनि को तरंगायित कर सके तो और भी अच्छा। उससे आपको मदद मिलेगी। और एक ही स्थान पर रोज रोज साधना करो तो वह और भी अच्छा रहेगा। वह स्थान आविष्ट हो जाएगा। अगर एक ही ध्वनि रोज रोज दोहराई जाए तो उस स्थान का प्रत्येक कण, वह पूरा स्थान एक विशेष तरंग से भर जाएगा; वहां एक अलग वातावरण, एक अलग माहौल बन जाएगा।


यही कारण है कि मंदिरों में अन्य धर्मों के लोगों को प्रवेश नहीं मिलता।अगर कोई मुसलमान नहीं है तो उसे मक्का में प्रवेश नहीं मिल सकता है, और यह ठीक है। इसमें कोई भूल नहीं है। इसका कारण यह है कि मक्का एक विशेष विज्ञान का स्थान है। जो व्‍यक्‍ति मुसलमान नहीं है वह वहां ऐसी तरंग लेकर जाएगा जो पूरे वातावरण के लिए उपद्रव हो सकती है। अगर किसी मुसलमान को हिंदू मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता है तो यह अपमानजनक नहीं है। जो सुधारक मंदिरों के संबंध में, धर्म और गुह्य विज्ञान के संबंध में कुछ भी नहीं जानते हैं और व्यर्थ के नारे लगाते हैं, वे सिर्फ उपद्रव पैदा करते हैं।


हिंदू मंदिर केवल हिंदुओं के लिए हैं, क्योंकि हिंदू मंदिर विशेष स्थान हैं, विशेष उद्देश्य से निर्मित हुए हैं। सदियों सदियों से वे इस प्रयत्न में लगे रहे हैं कि कैसे जीवंत मंदिर बनाएं,और कोई भी व्यक्ति उसमें उपद्रव पैदा कर सकता है। और यह उपद्रव खतरनाक सिद्ध हो सकता है। मंदिर कोई सार्वजनिक स्थान नहीं है। वह एक विशेष उद्देश्य से और विशेष लोगों के लिए बनाया गया है।वह आम दर्शकों के लिए नहीं है।


यही कारण है कि पुराने दिनों में आम दर्शकों को वहां प्रवेश नहीं मिलता था। अब सब को जाने दिया जाता है; क्योंकि हम नहीं जानते हैं कि हम क्या कर रहे हैं। दर्शकों को नहीं जाने दिया जाना चाहिए; यह कोई खेल तमाशे का स्थान नहीं है। यह स्थान विशेष तरंगों से तरंगायित है, विशेष उद्देश्य के लिए निर्मित हुआ है।

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2Comments
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  1. अबांछित लोग हमारे धार्मिक स्थल भावनाओं और परंपराओं का अनादर के साथ साथ मजाक उड़ाने के लिए आते हैं यह बिल्कुल रुकना चाहिए

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  2. सभी सनातनी भाइयों, बहनों और माताओं से अनुरोध है कि अधिक से अधिक लोगों तक यह पोस्ट पहुंचाया जाएं
    धन्यवाद

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