शिव मुद्राए
शिव की दश मुद्राओं के लक्षण
१.लिङ्गमुद्रा दाहिने हाथ के अँगूठे को ऊपर उठाकर उसे बायें अँगूठे से बाँधे। उसके बाद दोनों हाथों की उँगलियों को परस्पर बाँधे। यह शिवसान्निध्यकारक लिङ्ग मुद्रा हैं।
२.योनिमुद्रा दोनों कनिष्ठिकाओं को, तथा तर्जनी और अनामिकाओं को बाँधे। अनामिका को मध्यमा से पहले किञ्चित् मिलाये और फिर उन्हें सीधा कर दे। अब दोनों अंगूठों को एक दूसरे पर रक्खे यह योनि मुद्रा कहलाती हैं।
३.त्रिशूलमुद्रा कनिष्ठिकाओं को अंगूठों से बाँधकर शेष उँगलियों को सीधा रक्खें। यह त्रिशूल मुद्रा हैं।
४.अक्षमाला मुद्रा अँगूठों और तर्जनियों के अग्रभाग को मिलाये। दोनों हाथों की शेष तीन-तीन उँगलियों को परस्पर ग्रथित करके सीधा करे। यह अक्षमाला मुद्रा हैं।
५.अभय मुद्रा बाँयें हाथ को उठाये और हथेली खुली रक्खें। यह अभय मुद्रा हैं।
६.वरमुद्रा दाहिनी हथेली को अधोमुख करके हाथ फैलायें। -
७.मृगमुद्रा अनामिका और अँगूठे को मिलाकर उस पर मध्यमा को भी रक्खे। शेष दो उंगलियों को ऊपर की ओर सीधा खड़ा करे। यह मृग मुद्रा हैं।
८.खट्वाङ्गमुद्रा दाहिने हाथ की सभी उँगलियों को मिलाकर ऊपर उठाये। यह शिव की अत्यधिक प्रिय खट्वाङ्ग मुद्रा हैं।
९.कपालाख्यमुद्रा बायें हाथ को पात्रवत बनाकर ऐसे व्यवहार करना चाहिये मानो अपनी बाँई ओर से उठाकर उस पात्र में रक्खा जा रहा हैं यह कपाल की मुद्रा हैं। कुछ
१०.डमरुमुद्रा हल्की मुट्ठी बाँधकर मध्यमाओं को थोड़ा ऊपर उठाये फिर दाहिनी को कान तक उठाये। यह डमरू मुद्रा हैं जो सब विघ्नों का विनाश करती हैं।