*क्या था यह खिलाफत आंदोलन?*
खिलाफत जानने के लिये पहले जरा खलीफा के बारे में जान लें। खलीफा एक अरबी शब्द है जिसे अंग्रेज़ी में Caliph (खलीफ) या अरबी भाषा मे Khalifah (खलीफा) कहा जाता है। कौन होता है यह खलीफा...? खलीफा मुसलमानों का वह धार्मिक शासक (सुल्तान) होता है, जिसे मुसलमान मुहम्मद साहब का वारिस या successor मानते हैं। खलीफा का काम होता है युद्ध कर के पूरे विश्व पर इस्लाम का निज़ाम कायम करना (जो कश्मीर में बुरहान वानी करना चाहता था)। यानी इस्लाम की ऐसी हुकूमत कायम करना जिसमे इस्लामिक यानी शरीया कानून चले और जिसमे इस्लाम के अलावा किसी और धर्म की इजाज़त नही होती है।
1919/22 के दौरान Turkey यानी तुर्की में ओटोमन वंश के आखिरी सुन्नी खलीफा अब्दुल हमीद-2 का खिलाफा यानी शासन चल रहा था, जोकि जल्दी ही धराशाई होने वाला था। इस आखिरी इस्लामिक खिलाफा (शासन) को बचाने के लिए अब्दुल हमीद-2 ने जिहाद का आह्वान किया ताकि विश्व के मुसलमान एक होकर इस आखिरी खिलाफा यानी इस्लामिक शासन को बचाने आगे आएं।
पूरे विश्व मे इसकी कोई प्रतिक्रिया नही हुई, सिवाए भारत के। भारत के अलावा एशिया का कोई भी दूसरा देश इस मुहिम का हिस्सा नही बना, लेकिन भारत के कुछ मुट्ठी भर मुसलमान इस मुहिम से जुड़ गए और हजारों किलोमीटर दूर, सात समंदर पार तुर्की के खिलाफा यानी इस्लामिक शासन को बचाने और अंग्रेज़ों पर दबाव बनाने निकल पड़े। जबकि इस समय भारत खुद गुलाम था और अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था। अंततः 1922 में तुर्की से सुलतान के इस्लामिक शासन को उखाड़ फेंका गया और वहाँ सेक्युलर लोकतंत्र राज्य की स्थापना हुई और कट्टर मुसलमानों का पूरे विश्व पर राज करने का सपना टूट गया, इसी सपने को संजोए आजकल ISIS काम कर रहा है.!
भारत के चंद मुसलमानों ने अंग्रेज़ी हुकूमत पर दबाव बनाने के लिए बाकायदा एक आंदोलन खड़ा किया, जिसका नाम था - खिलाफत आंदोलन। कांग्रेस ने बड़ी ही चतुराई से इसका नाम ’खिलाफत आंदोलन’ रख दिया ताकि देश की जनता को मूर्ख बनाया जा सके और लोगों को लगे कि यह खिलाफत आंदोलन अंग्रेज़ों के खिलाफ है, जबकि इसका असल मकसद चनतमसल तमसपहपवने यानी पूर्णतः धार्मिक था, इसका भारत की आज़ादी या उसके आंदोलन से कोई लेना-देना नही था।
किसी ने गांधी की इस चाल का विरोध नहीं किया। मगर कांग्रेस में एक पढ़ा-लिखा व्यक्तित्व उपस्थित था, जिनका नाम था- ‘डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार’! उन्होंने इस आंदोलन का जमकर विरोध किया, क्योंकि खिलाफा सिर्फ तुर्की तक सीमित नही रहना था, इसका उद्देश्य तो पूरे विश्व पर इस्लाम की हुकूमत कायम करना था। जिसमे गज़वा-ए-हिन्द यानी भारत भी शामिल था!
डॉ हेगड़ेवार ने कांग्रेस के गांधी और नेहरू को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन वे नही माने, अंततः डॉ हेगड़ेवार ने कांग्रेस के इस खिलाफत आंदोलन का विरोध किया और कांग्रेस छोड़ दी!
मित्रों! कांग्रेसी जो ये कहते हैं कि RSS ने आज़ादी के आंदोलन का विरोध किया था, तो वो असल मे ‘खिलाफत आंदोलन’ का विरोध था!
1919 में खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ था और 1920 में डॉ हेगड़ेवार ने कांग्रेस छोड़ दी और सभी को इस आंदोलन के बारे में जागरूक किया कि इस आंदोलन का भारत की स्वतंत्रता से कोई लेना-देना नही है और यह एक इस्लामिक आंदोलन है। जिसका परिणाम यह हुआ कि यह आंदोलन बुरी तरह फ्लॉप हुआ! और 1922 में अंतिम इस्लामिक हुकूमत धराशाई हो गयी।
मुस्लिम नेता इससे बौखला गए और इसका बदला उन्होंने 1922-23 में केरल के मालाबार में हिन्दुओं पर हमला कर के लिया। असहाय अनभिज्ञ हिन्दुओं को बेरहमी से काटा गया, हिन्दू लड़कियों की इज़्ज़त लूटी गई, जबकि इस आंदोलन का भारत या उसके पड़ोसी देशों तक से कोई लेना देना नही था।
1923 के दंगों में गांधी ने हिन्दुओं को ही दोषी ठहराते हुए हिन्दुओं को कायर और बुजदिल कहा था। गांधी ने कहा- हिन्दू अपनी कायरता के लिए मुसलमानों को दोषी ठहरा रहे हैं, अगर हिन्दू अपने जान-माल की सुरक्षा नही कर सकता, तो इसमें मुसलमानों का क्या दोष? हिन्दुओं की औरतों की इज़्ज़त लूटी जाती है तो इसमें हिन्दू दोषी हैं?
डॉ हेगड़ेवार को अब समझ आ चुका था कि सत्ता के भूखे भेड़िये भारत की जनता की बलि देने से नही चूकेंगे। इसलिए उन्होंने हिन्दुओं की रक्षा और उनको एकजुट करने के उद्देश्य से तत्काल एक नया संगठन बनाने का काम प्रारंभ कर दिया और अंतः 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस की स्थापना हुई.आज अगर हम होली और दीवाली मानते हैं, आज अगर हम हिन्दू हैं, तो केवल उसी खिलाफत आंदोलन के विरोध और संघ की स्थापना की कारण, अन्यथा न जाने कब का 'गज़वा-ए-हिन्द' बन चुका होता...!