📚आपने क्या सीखा?

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 आपने क्या सीखा?


आजकल लगभग पूरी सोशल मीडिया इस बात पटी पड़ी रहती है कि 'आ तंक वाद' का कारण ये है वो है.उनकी किताब के इस भाग में लड़ना बताया गया है,उस भाग में लूटना एवं मारना सिखाया गया है.मधरसे में ये सब सिखाया जाता है,आदि।चलो ठीक है मान लेते है कि,उनका आसमानी किताब उन्हें यही सिखाता है और उन्होंने अपने किताब से यही सीखा है.


लेकिन, आपने अपने धर्मग्रंथो से क्या सीखा है ???


आपने अपने धर्मग्रंथों से इसी भेड़ों की तरह मिमियाना और मरना सीखा है क्या ?या फिर दूसरों पर दोषारोपण करके अपना पल्ला झाड़ लेना सीखा है ?हम सब उनके धर्मग्रंथो की तो खूब विवेचना करते हैं कि उसमें ये लिखा है वो लिखा है.

बैगन लिखा है लहसुन लिखा है.


लेकिन, क्या आपने कभी अपने धर्मग्रंथ उठा कर देखे हैं कि उसमें क्या लिखा है ?कभी अपने धर्मग्रन्थो में उठा कर देखते तो फिर अपनी गलती मालूम होती.


सच्चाई तो यह है कि यदि 100 करोड़ का झुंड अगर महज 18 करोड़ के झुंड से अगर आज इस तरह डर रहा है और भयभीत रहने को मजबूर है।


तो, आज जरूरत इस बात की आन पड़ी है कि अब वो 100 करोड़ की झुंड दूसरों की किताबों में ताकझांक करने की जगह अपनी किताबों में ताकझांक करे कि आखिर हमारे किताबों में ऐसी परिस्थिति से निपटने हेतु क्या बताया गया है.


असल में जब एक व्यक्ति 10 को मार रहा हो तो दूसरों को दोष देने के बजाए खुद में ये सोचना चाहिए कि आखिर हम इतने कायर कैसे हो गए कि कोई एक व्यक्ति हम दस को मार कर चला जा रहा है.


क्योंकि यहाँ कुछ हुआ नहीं कि लगते हैं मिमयाने और दूसरों को गाली देने.चलो, एक बार के मान भी लेते हैं उनके महजब ने तो उन्हें लूटना और मारना सिखाया है।जो वे कर रहे हैं.


लेकिन, क्या आपके धर्म ने आपको इसी तरह मिमियाना या फिर बोरिया बिस्तरा उठा के कोना-कुचारिया में घुसना सिखाया है क्या ?


अक्सर हम नारा लगाते हैं कि 

"गर्व से कहो हम हिन्दू हैं"तो, आखिर किस बात का गर्व होना चाहिए हमें,?


क्या इस बात का गर्व होना चाहिए कि हमारे 100 करोड़ होने के बाद महज 18 करोड़ वाले हमें दबा कर रखते हैं ?


या फिर, इस बात का गर्व है कि हम महज 18 करोड़ की धमकी से ही मिमियाने लगते हैं और वहाँ से भागने की जुगत भिड़ाने लगते हैं।


अथवा इस बात पर गर्व है कि हम अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के लिए तुरत किसी पर सारा दोष मढ़ देने में माहिर हैं.


अरे उनको तो आसमानी किताब ने जो सिखाया सो सिखाया.

लेकिन, आपके भगवान राम, कृष्ण, दुर्गा, काली और नरसिंह अवतार ने क्या आपको यही सिखाया है कि सबसे मार खाते रहो और, भेड़ों की मिमियाते एवं "बचाओ-बचाओ" चिल्लाते रहो।


धर्म ग्रंथ किसी लाल कपड़े में भक्तिभाव से लपेट कर रख देने के लिए नहीं होते हैं बल्कि उसे पढ़ कर सीखने के लिए होते हैं.


 धार्मिक व्यक्ति वो नहीं होता है जो रोज नहाए और अगरबत्ती जला के घंटों तक पूजा करे.


बल्कि धार्मिक व्यक्ति वो होता है जो अपने धर्म के अनुकूल आचरण करे.और, ये बताने की जरूरत नहीं है कि हमारे रामायण, महाभारत, गीता, शिव पुराण, विष्णु पुराण धार्मिक ग्रंथ हमें क्या बताते हैं.

और, धर्म के अनुकूल आचरण क्या होना चाहिए.


इसीलिए दुश्मनों से डरने अथवा बचाओ-बचाओ चिल्लाने की जगह अपने धर्म ग्रंथों का अध्ययन करें और उसी अनुकूल आचरण करें.क्योंकि अधर्म का मुकाबला करने की जगह मुँह छुपा कर भाग जाना अपने आप में ही "अधर्म" है.


अतःधार्मिक बनें,और, अपने धर्मानुकूल व्यवहार करें।जैसा कि भगवान राम, कृष्ण, वीर हनुमान, भगवान नरसिंह , माँ दुर्गा, माँ काली आदि ने किया था.

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