*निरीश्वरवाद*
समाज में बड़ी संख्या में एसे लोग है जो ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानते। उनके ऐसा कहने पर वे कई तरह के तर्क प्रस्तुत करते हैं। परंतु क्या वे तर्क सही हैं? और क्या निरीश्वरवादी होना इतना ही सरल है, जितना उन्हें लगता है? इस बात पर विचार करते हैं।
हम यहां शास्त्रों की बात नहीं करेंगे। निरीश्वरवादियों का सबसे बड़ा तर्क यही होता है कि यदि ईश्वर है, तो दिखता क्यों नहीं? परन्तु उन्हें इस बात पर विचार करना चाहिए कि दृश्य जगत से भिन्न एक अदृश्य जगत भी तो हैं जो हमें कभी दिखता नहीं। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण मुझे लगता है कि शब्द है क्योंकि, शब्द के अस्तित्व को कोई भी नकार नहीं सकता, जो सुनाई तो देता है पर दिखाई नहीं देता। जब आप किसी घटना को घटित होते देखते हैं उस समय आपके भीतर विभिन्न प्रकार के भाव उत्पन्न हो सकते हैं जिनको नाम देने बैठेंगे तो बहुत अधिक संख्या में हों जैसे; शंका, हर्ष, आलस्य, निर्वेद, ग्लानि, दैन्य, मोह, विषाद, उत्सुकता, उग्रता, शोक, करुणा आदि, इनकी कुल संख्या 33 मानी गई है। क्या ये सभी भाव आप देख या सुन सकते हैं, नहीं ना? तथापि ये अपना अस्तित्व रखते है क्योंकि इन्हें अनुभव किया जा सकता है।
जब भी आप ब्रह्म के अस्तित्व की बात करते हैं उसके दो मूलभूत आधार होते हैं या तो आप आत्मा की बात मानते हैं अथवा तर्क शक्ति का प्रयोग करते हैं। आप आत्मा की बात माने अथवा मनन करें दोनो ही परिस्थिति में आपको आत्मा तथा मन के अस्तित्व को मानना ही होगा। आत्मा हो अथवा मन ये स्थूल जगत का हिस्सा नहीं है। ये सूक्ष्म है जब आप कोई अच्छा कार्य करते हैं तो आपकी आत्मा उसे स्वीकार करती है तथा जब भी कोई गलत कार्य करते हैं जो वही आत्मा उसे नकारती है। विचारणीय बात है कि आत्मा को यह ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ। वह कौन सी शक्ति है जो उसे सत्य और असत्य में भेद करना सिखाती है।
निरीश्वरवादी कहते है कि संसार स्वतः बन गया इसके बनने के पीछे परमात्मा की भूमिका नहीं है। परंतु विचारणीय बात है कि बिना बुद्धि के तो एक कुर्सी भी नहीं बनाई जा सकती, तो संसार कैसे स्वतः बन सकता है। यह बात तो केवल वो ही कह सकता है जिसने संसार की व्यवस्थाओं का अवलोकन ना किया हो । इतनी व्यवस्थित सृष्टि को बनाने के लिए असीम सामर्थ्य और बुद्धि की आवश्यकता है। यदि इसके पीछे किसी की बुद्धि ना होती तो सौरमंडल से लेकर निहारिकाएँ कभी भी नियमबद्ध न होती। पिण्ड हो अथवा ब्रह्माण्ड सभी परमात्मा के अस्तित्व का प्रमाण हैं।