स्वास्तिक
जैसा आप सभी जानते हैं कि हमारे हिन्दू सनातन धर्म में परम पवित्र ॐ के बाद "स्वास्तिक चक्र" दूसरा सबसे पवित्र प्रतीक चिन्ह है!लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पवित्र प्रतीक चिन्ह "स्वास्तिक "का अर्थ एवं इसका महत्व क्या है?
दरअसल स्वास्तिक , मानव जाति की सबसे प्राचीनतम धार्मिक प्रतीक चिन्हों में से एक है,और, यह सिर्फ हमारे हिंदुस्तान या हिन्दू धर्म में ही नहीं बल्कि मिस्र, बेबीलोन, ट्रॉय , सिन्धु घाटी और माया जैसी प्राचीनतम सभ्यताओं में भी इस्तेमाल किया जाता था!
और, यह जानकर तो आप हैरान ही हो जायेंगे कि आज इस बात को साबित करने के लिए चौंकाने वाले पुख्ता सबूत मौजूद हैं कि भारत की सभ्यता मिस्र, बेबीलोन और माया सहित सभी प्राचीन सभ्यता से भी अधिक प्राचीनतम है और वास्तव में, अन्य सभी सभ्यताओं की जड़ में हिंदू सनातन धर्म ही है!
इसीलिए स्वास्तिक की उत्पत्ति के बारे में कोई निश्चित तारीख मौजूद नहीं है क्योंकि, हिंदू सनातन धर्म की उत्पत्ति की तारीख मौजूद नहीं है लेकिन फिर भी, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि हिन्दू सनातन धर्म की उत्पत्ति के साथ ही ""ॐ ""और "स्वास्तिक" चिन्हों की उत्पत्ति हुई है!
असल में स्वास्तिक संस्कृत शब्द "" स्वस्तिका"" शब्द से निकला है जिसका अर्थ शुभ या भाग्यशाली वस्तु है,और, इसे अच्छी किस्मत सूचित करने के लिए एक निशान के रूप में प्रयोग किया जाता है!
अगर हम शब्दों की बात करें तो स्वास्तिका. तीन संस्कृत शब्दों के संयोजन के द्वारा बनी है सु + अस्ति + का
इसमें " सु "" का अर्थ होता है अच्छा "अस्ति" का अर्थ होता है, वर्तमान में और, "का" का अर्थ होता है भविष्य में भी!
इसके अलावा स्वास्तिक संस्कृत के ही ""सु और वास्तु"" ( सुवास्तु ) का प्रतिनिधित्व करता है जिसका मतलब होता है सौभाग्य , खुशियाँ , अच्छा भविष्य , एवं समृद्धि !
इस तरह स्वास्तिक का अर्थ होता है वर्तमान और भविष्य में सब अच्छा या शुभ हो और हमें सौभाग्य , खुशियाँ , अच्छा भविष्य , एवं समृद्धि प्राप्त हो!
जहाँ तक स्वास्तिक के प्रतीक चिन्ह की बात है तो,
स्वास्तिक प्रतीक के चार बराबर हाथ के आकार शुभ शब्द 'सु' और प्राचीन ब्राह्मी लिपि की 'अस्ति' से ली गयी है जो प्रत्येक कोण पर थोडा झुकने का प्रतिनिधित्व करती है!
अब हम अगर मानव इतिहास की सर्वप्रथम लिखित ग्रन्थ वेदों की बात करें तो,ऋग्वेद में स्वास्तिक का चिन्ह उपलब्ध है लेकिन ,उसमें स्वास्तिक के अर्थ का वर्णन नहीं है!
लेकिन यजुर्वेद में कहा गया है,
“स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धास्त्रवाहा स्वस्तिनाह पुश विश्ववेदाः !
स्वस्ति नस्ताक्ष्य अरिश्तानेमिही स्वस्तिनो ब्रुहस्पतिर्दाधातु !!”
अर्थात "ब्रह्मांड के सभी देवता हमारे लिए शुभ हो ब्रह्मांड के शक्तिशाली संरक्षक प्रभुओं का प्रभु ही हमारे लिए सौभाग्य ला सकते हैं और, वही हमारे लिए भाग्य लाते है."
साथ ही जब हम प्रतिनिधित्व की बात करते हैं तो,स्वास्तिक भगवान की दिव्य एवं सर्वोच्च सृजन का प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रयोग किया जाता है और,हमारे हिंदू धर्म में इसका मतलब है। घूमते सूरज इसके चार बांह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते सौरमंडल के ग्रह चाँद की चार तिमाहियों, चार युगों, चक्रों की पीढ़ी, जीवन का पहिया, जीवन के चार उद्देश्य आदि
इसके अलावा स्वास्तिक परम पिता ब्रह्मा,विष्णु एवं महेश के 108 परम पवित्र प्रतीक चिन्हों में से एक है!
इसीलिए इस पवित्र स्वास्तिक को,घर , कार्यालय और परिवार / व्यक्तिगत जीवन में शांति और समृद्धि को बनाए रखने के उद्देश्य से प्रयोग किया जाता है,और, स्वास्तिक अक्सर तुलसी के पौधे के नीचे या हिंदू अनुष्ठान में इस्तेमाल धातु के बर्तन , कलश और इसी तरह बर्तन पर एक सौभाग्य के प्रतीक के रूप में सिंदूर या चन्दन से बनायी जाती है!
ध्यान रहे कि,स्वास्तिक के दो रूप होते हैं,और,स्वास्तिक के इन दो रूपों में ही भगवान ब्रह्मा के दो रूपों का प्रतिनिधित्व है!
जिसमे से दांई मुख का स्वास्तिक जीवन के प्रारंभ ( प्रवृति ) को
और, वाम मुख स्वास्तिक. जीवन के निवृति का प्रतिनिधित्व करता है!
इसीलिए किसी की अंधी अनुकरण अथवा देखा-देखी करने की अपेक्षा,हर चीज को तथ्यात्मक ढंग से समझना ही सर्वोत्तम विकल्प है!तभी हम अपनी पहचानों एवं अपनी परम्परों और अपने गौरवमयी आदर्श मूल्यों को ठीक ढंग से समझ पाएँगे.