सनातन विज्ञान
हमारे सनातनी विज्ञानी मनीषियों ने जीवन के हर क्षेत्र में उपयोग होने वाले वस्तुओं का निर्माण किया।
वो लघु हो या विशालकाय कोई अंतर नहीं किया गया और सब निर्माण उत्कृष्ट ही रहा।
वह शल्यक्रिया से सम्बंधित यंत्र हो या तकनीकी, विज्ञान, भौतिकी, मन्दिर, भवन, राजप्रासाद, अस्त्र शस्त्र, यातायात साधन विमान कृषि यंत्र या कुछ और.. सभी प्रकार के उपयोगी निर्माण किया गया।
तो वे क्या "कटलरी" चम्मच/कांटा/छूरी का निर्माण कार्य भूल गए थे जो उन्होंने नहीं बनाया।
और आज हमें आधुनिकता में इन वस्तुओं का उपयोग आत्मिक संतुष्टि देता है कि हम भी पाश्चात्य संस्कृति के फॉलोवर्स हैं। कि हम भी स्टैंडर्ड मेंटेन करते हैं।
आईए जानते हैं :---
इस सृष्टि में सभी वस्तुओं की रचना पञ्च महाभूतों से ही हुआ है
आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी।
हमारी काया का निर्माण भी इन्हीं पञ्च महाभूतों से हुआ है।
हमारे देह में पाँच कोश हैं :- अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, विज्ञानमय कोश, मनोमय कोश, आनन्दमय कोश।
यह भी प्रमाणित सत्य है कि हमारी अँगुलियाँ इन पञ्च महाभूतों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
ℹ अँगूठा अग्नि का प्रतिनिधित्व करता है.!
ℹ तर्जनी वायु का प्रतिनिधित्व करता है.!
ℹ मध्यमा आकाश का प्रतिनिधित्व करता है.!
ℹ अनामिका पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करता है.!
ℹ कनिष्ठा जल का प्रतिनिधित्व करता है.!
इनमें से किसी भी एक तत्व का असंतुलन रुग्णता का कारण बन सकता है।
स्वस्थ रहने के लिए पञ्च कोशों में सन्तुलन होना आवश्यक है।
जब सभी उँगलियों को मिलाने पर हस्त मुद्रा बनता है तो यह तत्वों में परिवर्तन/विघटन/प्रत्यावर्तन/सन्तुलन में सहायक होता है।
और इसे हम भौतिक रूप में अनुभव नहीं कर सकते परन्तु इस संतुलन का प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है।
इस हस्त मुद्रा में काया को निरोग रखने की क्षमता निहित है।
इसलिए जब हम भोजन ग्रहण करते समय सभी उँगलियों को मिलाते हैं तो इन सारे तत्वों को एक जुट करते हैं जिससे भोजन संतुलित ऊर्जादायक बन जाता है।
यह हमारे सभी पञ्च कोशों को संतुलित रखता है।
हम स्वस्थ सानन्द रहते हैं।
इसके अतिरिक्त..
स्पर्श हमारे देह का सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण अनुभव है।
जब हम हाथों से भोजन ग्रहण करते हैं तो हमारा मस्तिष्क हमारे उदर को यह संकेत देता है कि हम भोजन ग्रहण करने वाले वाले हैं, पाचक रसों का स्राव आरम्भ किया जाए।
इससे हमारा उदर इस भोजन को पचाने के लिए उद्यत हो जाता है जिससे उचित पाचन क्रिया सुनिश्चित किया जाता है।
जब हाथों से भोजन ग्रहण करते हैं तो उस पर ध्यान केंद्रित रहता है।
यह Mindful Eating है।
Mindful Eating का महत्वपूर्ण लाभ होता है कि इससे भोजन का आनन्द बढ़ जाता है जिससे पाचन क्रिया सुधरती है और यह आपको स्वस्थ रखता है।
यह आपके मुँह को अत्यधिक गर्म पदार्थ लेने और उससे मुँह जलने से बचाता है।
हमारा हाथ एक अच्छे तापमान संवेदक का काम भी करता है।
भोजन के स्पर्श से ही यह अनुमान हो जाता है कि भोजन अत्यधिक गर्म/ठंढा या सामान्य तापमान पर है।
और हमारी मुँह जीभ जलने या ठंढ से प्रभावित होने से बचाता है।
एक बार अपने हाथों से भोजन करने का आनन्द तो लें..!!
यह अनुभूति आप भूल नहीं पाएँगे..!!