👿अभेद किले रूपी संस्कृति पर गहरे प्रहार

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 पुराने जमाने में किले की दीवारें 

बेहद मजबूत हुआ करती थी..!


इतनी मजबूत कि महीनों तक हाथी उसपर टक्कर मारते रहें लेकिन उसे तोड़ पाना असंभव होता था.

ऐसी स्थिति में पूरे किले में सिर्फ मुख्य द्वार ही किले की कमजोर कड़ी हुआ करता था जिसमें से दुश्मन की सेना घुस सके...!


लेकिन, मुख्य द्वार को भी तोड़ पाना मुमकिन नहीं था क्योंकि एक तो किले के मुख्य दरवाजे के बाहर भी दीवारों की ही तरह गहरे गड्ढे खुदे होते थे, जिसमें पानी भरे रहते थे एवं मगरमच्छ तैरते रहते थे.


उस पर से भी किले के मुख्य द्वार पर लोहे के नुकीले भाले लगे रहते थे ताकि अगर कोई किसी तरह किले के मुख्य द्वार तक पहुंच भी जाये तो उसमें हाथी से टक्कर न मारे जा सकें.


इस तरह से कोई भी किला लगभग अभेद्य ही होता था.


लेकिन, जब मंगोलों ने बारूद का आविष्कार किया तो उन्होंने किले के दीवारों को तोड़ने की बहुत ही यूनिक टेक्निक अपनाई.


उनके सैनिक... दीवारों पर छोटे मोटे हथौड़े मारते रहते थे... जिससे कि किले की दीवारों को न तो कोई नुकसान पहुंचना था और न ही पहुंचता था...!


तथा, मंगोलों की ऐसी बेवकूफाना हरकत देखकर किले के रक्षक उनकी हंसते थे कि ये कितना बड़ा मूर्ख है जो किले की दीवारों को छोटे मोटे हथौड़े से तोड़ने की कोशिश कर रहा है.


और, वास्तव में भी मंगोल किले की दीवारों को तोड़ने के लिए नहीं बल्कि किलेदार को भटकाने के लिए ही ऐसा किया करते थे.


जबकि, असलियत में.... मंगोलों की मारक टुकड़ी किले के नींव से सटाकर एक नाला खोद रही होती थी... 


और, फिर उस नाले में बारूद भर कर धमाका कर दिया जाता था.


जिससे किले की मजबूत से मजबूत दीवार भी भरभरा कर गिर जाती थी। इसके साथ ही मंगोल सेना धड़धड़ाकर अंदर घुस जाती थी तथा किले के मुख्य द्वार को खोल दिया जाता था.


परिणामस्वरूप किले पर मंगोल सैनिकों का कब्जा हो जाता है.


एकबारगी ये सब सुनकर लगता है कि .... 


ये सब तो इतिहास की बात है.


लेकिन, ऐसा है नहीं.... 


आज भी दुश्मनों द्वारा वही टेक्निक अपनाई जा रही है.... हिंदुस्तान के हिन्दू रूपी किले पर कब्जा करने हेतु.


आज भी.... हिंदुओं की नींव में गड्ढा खोद कर उसमें बारूद भरा जा रहा है ताकि उसमें विस्फोट करवाया जा सके.


सैकड़ों सालों तक राज करने के बाद भी दुश्मन हमपर विजय नहीं पा सके..


क्योंकि, हमारे किले की दीवार... हमारी सभ्यता संस्कृति और हमारी हिंदुत्व की भावना अक्षुण्ण रही.

लेकिन, अब हमारी उसी सभ्यता संस्कृति और हिंदुत्व की भावना की नींव में बारूद भरा जा रहा है.


कल तक जो रावण, महिषासुर आदि हमारे खलनायक हुआ करते थे... आज उसे नायक बना कर प्रस्तुत किया जा रहा है.


एक बार अगर हमने इसे हल्के में लिया और दुश्मन हमारे किले की नींव में बारूद भरने में सफल हो गये तो इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है कि इसका परिणाम क्या होगा...!


अगर एकबार रावण और महिषासुर आदि को नायक बनाकर प्रस्तुत करने दिया गया तो भगवान राम, श्रीकृष्ण, माँ दुर्गा आदि स्वयं ही खलनायक सिद्ध हो जाएंगे.


फिर, सारी परंपरा खत्म... सारी मान्यता खत्म.


फिर, दुश्मनों को राममंदिर या दुर्गापूजा में हुड़दंग मचाने की जरूरत नहीं पड़ेगी...


बल्कि, अपने ही हिन्दू समुदाय के लिए लाठी-डंडा लेकर पहुंच जाएंगे कि....


हम रावण वध नहीं दिखाने देंगे...


या, फिर... प्रतिमा में से महिषासुर वध वाली प्रतिमा हटाओ.


और, यही होगा हिंदुस्तान से हिंदुत्व का लोप..!


इसीलिए.... इन सब से निपटने का सिर्फ एक तरीका है कि हम दुश्मन को अपने किले की नींव में बारूद लगाने ही न दें.


न बारूद लगेगा... और, न धमाका होगा.


अतः... ऐसा जो भी करता हो चाहे उसका कारण कुछ हो... 


उसका वर्ण कुछ भी हो... 

उसका संगठन कुछ भी हो..


सभी को मिलकर उसे ह्रास किये जाने की जरूरत है.


अन्यथा, जब धर्म ही नहीं बचेगा तो क्या वर्ण को माथे पर साट कर घूमेंगे कि हम श्रेष्ठ हैं या हम सदियों से दबे कुचले हैं ???


इसीलिए.... एकमत से हमारी सभ्यता संस्कृति में बारूद लगाने की ऐसी प्रवृत्ति पर रोक लगाए जाने की जरूरत है..


ताकि, हमारे पूर्वज जो हमें विरासत में एक उत्कृष्ट सभ्यता संस्कृति दे गए हैं हम लोग उसे अपने पराक्रम से आकाश की ऊंचाई तक ले जाएं न कि उसे रसातल में पहुंचा दें.


जय सनातन धर्म...!!

जय महाकाल...!!!

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