संस्कारी विद्यार्थी के संस्कार

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 संस्कारी विद्यार्थी के संस्कार

संस्कार विनम्रता सिखाता है । विद्यार्थी का विनम्र होना अति आवश्यक है।संस्कारी व्यक्ति नियमितता का पालन करता है।

संस्कारीव्यक्ति में समर्पण काभाव होता है और जब तक विद्यार्थी स्वयं को गुरु को समर्पित नहीं कर देगा तब तक उसका निर्माण नहीं हो सकता जिस प्रकार माटी अपने आपको कुम्हार को समर्पित कर देती है तभी कुम्हार उसको घड़े का आकार दे पाता है । 

मिट्टी को कुम्हार बहुत परेशान करता है । पहले तो उसे जमीन से छुड़ाता है यानी उसे अपने परिवार से अलग करता है । फिर उसको गधे पर लादता है अर्थात् बेइज्जती करता है फिर घर लाकर कर उसको डंडे से पीट - पीटकर बारीक करता है फिर पानी मिलाकर उसको पैरों तले कुचलता है फिर उसको चाक पर चढ़ा कर घुमाता है फिर उसको लकड़ी के पाटा से पीटता है पश्चात उसको धूप में रख देता है अंत में उसको अग्नि में पकाया जाता है तब जाकर कहीं वह मटके का आकार लेकर लोगों के परिंडे पर सजता है और लोगों की प्यास बुझाता है ।

 इसी प्रकार विद्यार्थी भी अपने आप को गुरु को समर्पित कर दे । गुरु निर्माण के लिए कितना ही प्रताड़ित करें उफ किए बिना गुरु अनुसरण करता रहे तो निश्चित ही वह अपने स्वयं के ज्ञान की प्यास तो बुझाएगा ही।अन्य लोगों की प्यास बुझाने में समर्थ हो पाएगा ।

नयन पंड्या - प्रशासक समिति सदस्य

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