कर्ण मंदिर, रहस्यमई बरगद, कर्ण का अंतिम संस्कार

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 रहस्यों से भरी है वह भूमि जहां हुआ था कर्ण का अंतिम संस्कार, हजारों साल से इस पेड़ पर लगे हैं सिर्फ 3 पत्ते



कर्ण की इच्छा के अनुसार भगवान कृष्ण उनका दाह संस्कार करने खुद यहां आए थे. यहां एक इंच भूमि पर शव रखना असंभव था. ऐसे में भगवान कृष्ण ने उस भूमि के टुकड़े पर पहले एक बाण रखा. इसके बाद उस पर कर्ण के शरीर को रखकर दाह संस्कार किया.


 महाभारत, एक ऐसी पौराणिक कथा जिसके बारे में आपने बहुत कुछ देखा, सुना और पढ़ा होगा. इसके कुछ किरदार ऐसे हैं जिनको आज भी लोग अलग-अलग मौकों पर याद करते हैं. उन्हीं में से एक का नाम कर्ण है. कर्ण को उनकी बहादुरी, दानवीरता, वचन और मित्रता के लिए याद किया जाता है. महाभारत के युद्ध के 17वें दिन इस वीर की मृत्यु हुई थी. ऐसी मान्यता है कि मौत के बाद कर्ण की वीरता और दानवीरता से प्रसन्न भगवान कृष्ण ने उनके जीवन के अंतिम क्षणों में एक वरदान मांगने को कहा था. कर्ण ने उनसे ऐसी भूमि पर अपना अंतिम संस्कार किए जाने की इच्छा जताई थी, जहां पहले कभी किसी का अंतिम संस्कार न हुआ हो.


1 इंच जमीन और बाण पर हुआ था दाह संस्कार


मान्यता है कि भगवान को पूरी पृथ्वी पर भूमि का कोई ऐसा टुकड़ा नहीं मिला, जहां पहले किसी व्यक्ति का दाह संस्कार न हुआ हो. काफी तलाशने के बाद उन्हें केवल सूरत शहर में ताप्ती नदी के किनारे एक इंच जमीन ही ऐसी मिली, जहां पहले कभी किसी का शवदाह नहीं हुआ था. सूरत शहर के बराछा इलाके के लोगों का मानना है कि कर्ण की इच्छा के अनुसार भगवान कृष्ण उनका दाह संस्कार करने खुद यहां आए थे. यहां एक इंच भूमि पर शव रखना असंभव था. ऐसे में भगवान कृष्ण ने उस भूमि के टुकड़े पर पहले एक बाण रखा. इसके बाद उस पर कर्ण के शरीर को रखकर दाह संस्कार किया. इस जगह को अब लोग 'तुल्सीबड़ी मंदिर' के रूप में पहचानते हैं.


तीन पत्ता बड़ मंदिर में सबसे बड़ा रहस्य


इस मंदिर में बड़ी संख्या में लोग दर्शन करते आते हैं. मंदिर परिसर में ही एक गोशाला है, जहां गायों की सेवा की जाती है. इस मंदिर को लेकर लोगों में काफी श्रद्धा है. इस मंदिर को तुलसी बाड़ी मंदिर भी कहा जाता है. यहां तीन पत्ता बड़ का एक मंदिर भी है. दरअसल, यहां बरगद का एक पेड़ है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह हजारों साल पुराना है, लेकिन इस पर आज तक सिर्फ 3 पत्ते ही आए हैं. हैरानी की बात ये है कि ये तीनों पत्ते आज भी हरे-भरे हैं. अमावस और पूर्णिमा के मौके पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।


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