क्यों दोपहर में होता है पितरों का भोजन?, क्षिण दिशा की ओर पिंडदान और तर्पण
पितृ पक्ष, पितरों का याद करने का समय माना गया है। भाद्र शुक्ल पूर्णिमा को ऋषि तर्पण से आरंभ होकर यह आश्विन कृष्ण अमावस्या तक जिसे महालया कहते हैं उस दिन तक पितृ पक्ष चलता है।
इस दौरान पितरों की पूजा की जाती है और उनके नाम से तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। पितृ पूजा में कई बातें ऐसी हैं जो रहस्यमयी हैं और लोगों के मन में सवाल उत्पन्न करते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है।
श्राद्ध का नियम है कि दोपहर के समय पितरों के नाम से श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। शास्त्रों में सुबह और शाम का समय देव कार्य के लिए बताया गया है। लेकिन दोपहर का समय पितरों के लिए माना गया है। इसलिए कहते हैं कि दोपहर में भगवान की पूजा नहीं करनी चाहिए। दिन का मध्य पितरों का समय होता है। दरअसल पितर मृत्युलोक और देवलोक के मध्य लोक में निवास करते हैं जो चंद्रमा के ऊपर बताया जाता है।
दूसरी कारण यह है कि दोपहर से पहले तक सूर्य की रोशनी पूर्व दिशा से आती है जो देवलोक की दिशा मानी गई है। दोपहर में सूर्य मध्य में होता है जिससे पितरों को सूर्य के माध्यम से उनका अंश प्राप्त हो जाता है। तीसरी मान्यता यह है कि, दोपहर से सूर्य अस्त की ओर बढ़ना आरंभ कर देता है और इसकी किरणें निस्तेज होकर पश्चिम की ओर हो जाती है। जिससे पितृगण अपने निमित्त दिए गए पिंड, पूजन और भोजन को ग्रहण कर लेते हैं।
पितृपक्ष में पितरों का आगमन दक्षिण दिशा से होता है। शास्त्रों के अनुसार, दक्षिण दिशा में चंद्रमा के ऊपर की कक्षा में पितृलोक की स्थिति है। इस दिशा को यम की भी दिशा माना गया है। इसलिए दक्षिण दिशा में पितरों का अनुष्ठान किया जाता है।