आधुनिक मकड़ी का जाल जो हिंदुत्व नष्ट करेगा
पुरुष का आकर्षण पच्चीस के बाद बढ़ना शुरू होता है तब जब उसका केरियर दुनिया को दिखने लगता है चालीस की उर्म्र उस का आकर्षण उच्च स्तर पर होता है उसके बाद कम होना शुरू होता है।
महिलाओं का पीक पच्चीस की उम्र में हो जाता है बीस से पच्चीस में वो सबसे ज्यादा आकर्षक होती है इसी उम्र में उन के आगे पीछे घुमने वाले सबसे ज्यादा होते है,इस के बाद उनके आकर्षण का डिक्लाइन होता रहता है।
वामपंथी सोच के चक्कर में फस के पैंतीस की उम्र तक फेमेनिस्ट क्रांति करती है "आई हेट मेन" "आल मेन आर डॉग" जैसे क्रांतिकारी नारे लगाती है उनकी बाद की पूरी जिंदिगी बर्बाद रहती है और आगे चल ऐसी ही लडकिया कविता कृष्णन सूअरा भास्कर जैसी बनती है...?
आपने कच और देवयानी की कथा तो सुनी होगी,देवगुरू बृहस्पति का पुत्र कच तीन बार मृत्यु का साक्षात् कर शुक्राचार्य के पेट में घुस कर उससे संजीवनी विद्या सीख लेता है,लक्ष्य पूरा होते ही कच वापस आ शुक्राचार्य की सम वयस्क पुत्री देवयानी के प्रणय निवेदन को भी ठुकरा देता है,उसे अपने लक्ष्य के सम कक्ष किसी भी युवती के जज्बात महत्त्वहीन लगते हैं,जिसे प्रेम कहा जाता है,वह एक नहीं तो दूसरे से हो जाता है,देवयानी बाद में कच को भूल गई और उसका विवाह अन्यत्र हुआ,भारत की जाति परम्परा में बचपन में ही विवाह कर देते थे,कोई लवमैरिज नहीं,माँ बाप तय करते थे,एक नर है दूसरी नारी है तो प्यार व्यार अपने आप हो जाएगा,समयानुसार प्रेम की फसल पकती रहती थी,उन जोड़ों में ऐसे भावुक कथानक विद्यमान हैं कि आजीवन साथ रहे,साथ रहते रहते उनकी चेहरे की आकृतियां एक ही हो गई,एक बीमार पड़ता दूसरे को दर्द होता,यहाँ तक कि एक के शरीर छोड़ने पर दूसरे ने भी अंतिम सांस ली,हजारों ऐसी सच्ची कथाएं विद्यमान हैं।
लेकिन इन उदाहरणों को कभी भी साहित्य में जगह नहीं मिली,वाम पंथी लेखक,प्रोफेसर,छात्र और नेताओं के लिए उन्मुक्त यौन व्यवहार हमेशा प्राथमिक रहा बल्कि में तो कहता हूं उनकी सृष्टि ही इस पर खड़ी है,प्रेम के नाम पर आरम्भ में ऐसी कथाएं बुनी गई जिनमें प्रेमी प्रेमिका विलेन के चंगुल से छूट अनेक बाधाएं पार कर मिलते हैं कभी किस्सा तोता मैना, वयस्क साहित्य माना जाता था आजकल तो ये सब कहानियां बच्चों को भागवत और रामायण की उपेक्षा कर,धर्मग्रंथों की तरह घोट पिलाई जाती है।
आज प्रेम,सेक्स,मित्रता,देह की तुष्टि आदि सब गड्ड मड्ड है,महेश थुकल bhutt किसी अपनी ही बेटी,पॉटी, भांजी के साथ बैठा है तो वहां क्या पल रहा है कुछ भी अनुमान नहीं,सन्नी लियोनि नामक एक महिला बोल्ड हीरोइन अभिनेत्री बनने की ass में भारतीय सिनेमा में स्थापित होकर सेलिब्रिटी बन जाती है।
सीरियलो ने विवाहोतर सम्बन्धों को नेचुरल बना दिया है,कभी निजी समस्याए सुलझाने के नाम पर फुट पाथों पर अश्लील साहित्य बिकता था,आज क्राइम पेट्रोल इत्यादि सीरियल जनता को परिपक्व बनाने के नाम पर बहुत सारे आइडिया देता है...?
आज प्रेम व्यभिचार का पर्याय है,पूरी दुनिया जानती है कि भारत में अधिसंख्य रखैलें और कोठों पर कौन सी बाईयां बैठा करती थीं,उन गुप्त गलियों की अपसंस्कृति,धीरे धीरे शिक्षा और मनोरंजन के रास्ते घरों में घुस चुकी है,ऊपर से भोगवाद तड़का, आधुनिकता का भूत और वर्जनाओं को परतंत्रता समझने का आत्मघाती भ्रम,जब गली में एक सती और रण्डी के बीच लड़ाई हो तो हमेशा रण्डी जीतती है क्यों कि उसकी तरफदारी में बहुत सारे सफेदपोश जमा हो जाते हैं।
संस्कृतियों की इस लड़ाई में हिंदुओं के पास बहुत सीमित विकल्प हैं,मनोरंजन,आधुनिकता और शिक्षा की वर्तमान व्यवस्था को एक झटके में लात मारकर बाहर आने का साहस किसी में नहीं,अभी तो कुछ नहीं हुआ है वास्तविक समस्या आगे है सब जगह लल्ला लल्ली के खेल को असली वाला सच्चा प्यार कह कर महिमामंडन किया जा रहा है "प्रेम चाहिए,प्यार चाहिए,प्यार ही सब कुछ है,प्यार बिना सब सूना प्यार करो,सुबह से लेकर शाम तक बस प्यार करो" प्यार न हुआ कोई ऑक्सीजन का कोरोना काल मे सिलेंडर हो गया,इस अविष्ट थोपी व्यवस्था में हिन्दू पुरुष खटता रहता है,महिलाएं सोशल मीडिया पर प्यार तलाश रही हैं..."भोगे,भगाए...गोरी का यार बलम तरसे रंग बरसे..."...?
पूरे देश में हो रही इन घटनाओं का विश्लेषण करते हैं तो स्थिति भयावह है,लगता है शुक्राचार्य के चेले देवयानी का प्रतिशोध लेने बृहस्पति के पेट में घुस चुके हैं अर्थात लग्भग उनका ही वर्चस्व है वहां से जब जिस का चाहे,माल ए गनीमत उठा कर चल देते हैं प्रेम की आड़ में पनपता लवजिहाद वो घाव है जो हिंदुओं से उनकी स्त्रियां छीनने का षडयंत्र,सफल हो चाहे नहीं,बेइज्जती, हीनता बोध,शर्मिंदगी,उनकी कमाई में से हिस्सा और इधर की एक कोख,उधर फैक्टरी बनकर धड़ाधड़ बच्चे जनने की मशीन बनाने का विस्तृत,व्यवस्थित खेल बन चुका है...???