🤔 ब्राह्मणों ने समाज को तोड़ा या जोड़ा?

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 ब्राह्मणों ने समाज को तोड़ा नही अपितु जोडा है।


ब्राम्हणों  ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े दलित को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि *दलित* स्त्री द्वारा बनाये गये चूल्हे पर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगें।

इस तरह सबसे पहले दलित को जोडा गया।

 धोबन के द्वारा दिये गये सुहाग से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा।


 कुम्हार  द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पूजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को जोड़ा।


 मुसहर जाति जो वृक्ष के पत्तों से पत्तल/दोनिया बनाते है यह कहते हुये जोड़ा कि इन्हीं के बनाए गये पत्तल/दोनीयों से देवताओं का पुजन सम्पन्न होगे।

 कहार जो जल भरते थे यह कहते हुए जोड़ा कि इन्हीं के द्वारा दिये गये जल से देवताओं के पूजन होगा।

 बिश्वकर्मा जो लकड़ी के कार्य करते थे यह कहते हुये जोड़ा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन/चौकी पर ही बैठकर वर-वधू देवताओं का पुजन करेंगे।


 फिर वह हिन्दु जो किन्हीं कारणों से मुसलमान बन गये थे उन्हें जोड़ते हुये कहा गया कि इनके द्वारा सिले हुये वस्त्रों (जामे-जोड़े) को ही पहनकर विवाह सम्पन्न होगें।


फिर उस हिन्दु से मुस्लिम बनीं औरतों को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा पहनाई गयी चूडियां ही बधू को सौभाग्यवती बनायेगी।

 धारीकार जो डाल और मौरी को दूल्हे के सर पर रख कर द्वारचार कराया जाता है,को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा बनाये गये उपहारों के बिना देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिल सकता।

डोम जो गंदगी साफ और मैला ढोने का काम किया करते थे उन्हें यह कहकर जोड़ा गया कि मरणोंपरांत इनके द्वारा ही प्रथम मुखाग्नि दिया जायेगा।


इस तरह समाज के सभी वर्ग जब आते थे तो घर कि महिलायें मंगल गीत का गायन करते हुये उनका स्वागत करती है।और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर बिदा करती थी।

ब्राह्मणों का दोष कहाँ है?...हाँ ब्राह्मणों का दोष है कि इन्होंने अपने ऊपर लगाये गये निराधार आरोपों का कभी खंडन नहीं किया, जो ब्राह्मणों के अपमान का कारण बन गया। इस तरह जब समाज के हर वर्ग की उपस्थिति हो जाने के बाद ब्राह्मण नाई से पुछता था कि क्या सभी वर्गो कि उपस्थिति हो गयी है...?

🤙 नाई के हाँ कहने के बाद ही ब्राह्मण मंगल-पाठ प्रारम्भ किया करते हैं।


ब्राह्मणों द्वारा जोड़ने कि इस क्रिया को विदेशी मूल के लोगो ने अपभ्रंश किया।

देश में फैले हुये समाज विरोधी साधुओं और ब्राह्मण विरोधी ताकतों का विरोध करना होगा जो अपनी अज्ञानता को छिपाने के लिये वेद और ब्राह्मण की निन्दा करतेे हुये पूर्ण भौतिकता का आनन्द ले रहे हैं।


कृपया ध्यान से सोचे वाकई ब्राम्हण ने हमेशा त्याग किया है समाज के सभी लोगों को जोड़ा है कभी तोड़ा नहीं है। यह भ्रम मन से, सोच से ,निकाल दीजिए। 

इसके पास हमेशा राजा बनने की कुबत थी ।लेकिन मंत्री बन कर समाज का उद्धार किया है।

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