हिंदू जब मुसलमान हो जाता है, तो कितना घातक होता है?
एक थे राघवराम कौल काश्मीरी ब्राह्मण, जिनको गौमांस खिलाकर मुसलमान बनाया गया था! इनके पुत्र का नाम शेख इब्राहीम था। शेख इब्राहीम के पुत्र का नाम शेख अब्दुल्ला। शेख अब्दूल्ला के पुत्र का नाम फारुक अब्दुल्ल... फारुक अब्दुल्ला के पुत्र है उमर अब्दुल्ला।
ये है राघव राम कौल का अब्दुल्ला परिवार। जब तक वे ताकत में रहे, काश्मीर में भी लोगों के साथ वही व्यवहार किया, जो उनके पूर्वजों के साथ हुआ! वही नैरेटिव चल रहा था- डोगरा, सिंधी, कश्मीरी पंडित, बाल्मीकि समाज, सबके मांस को नोच-नोच कर खाया, पलायन, हत्या से भरा काश्मीर का विगत 70 वर्षों का इतिहास का।
एक थे चितपावन ब्राह्मण जिनका नाम तुलसीराम था! उन्होंने टीपू सुल्तान से बचने के लिए इस्लाम कुबूल कर लिया था और अपने गांव ओवैस को उन्होंने अपना सरनेम ओवैसी बना लिया। उन्ही तुलसीराम के पुत्र का नाम अब्दुल वाहिद ओवैसी था। अब्दूल वाहिद के पुत्र का नाम सुल्तान ओवैसी था। सुल्तान ओवैसी के पुत्र का नाम सलाहुद्दीन ओवैसी था। सलाहुद्दीन ओवैसी के पुत्र का नाम असद्दुदीन ओवैसी और अकबरूद्दीन ओवैसी।
विडंबना देखिये कि ओवैशी ब्रदर जिस गोडसे से घृणा करते हैं, ये उसी समाज से हैं। यानि दोनों चितपावन ब्राह्मण!! इनका भी यही नैरेटिव दूसरे लोगों को डराना और हर साल 15 मिनट की छूट का समय मांगना।
एक थे मुहम्मद अली जिन्ना जो पाकिस्तान के बाप कहे जाते थे! इनके भी बाप का नाम पुंजालाल ठक्कर था! जो एक गुजराती हिंदू थे। ये पैसे के लिए धर्म छोड़ दिए। इनका भी वही नैरेटिव था और आज भी है। खुद तो पैसे के लिए कटोरा पकड़ लिये दूसरों को भी पकड़ाए।
भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश के लगभग सभी मुसलमानों के पूर्वज वास्तव में हिन्दू ही थे, जो मुग़ल शासकों के भय व उनके द्वारा लोभवश मुस्लिम बन गए। आज उन्हीं की औलादें जानकारी-अनजाने में इस्लाम के नाम पर आतंक अथवा मारकाट कर रही हैं। काश कि वे अपने पूर्वजों की गलती को सुधार, घर वापसी कर उनकी आत्मा को शांति पहुंचाने का कार्य करते।
ईश्वर एक है तो धर्म भी एक ही होगा। सत्य, शाश्वत और सनातन होता है, धर्म भी शाश्वत और सनातन होता है। धर्म के नाम पर कल या आज पैदा होने वाले मज़हब, मत-सम्प्रदाय शाश्वत नहीं, सनातन नहीं! धर्म न हैं, न ही हो सकते हैं। धर्म के जो निषिद्ध बुरे कर्म हैं, वे मजहब के मान्य सत्कर्म हैं। इसके बावजूद जो मजहब को भी धर्म समझते हैं, ऐसा अज्ञानतावश है। सत्य तो वही है, जो था और रहेगा-- सनातन वैदिक धर्म!
भारतीय मुसलमानों के पूर्वज इस्लाम धर्म स्वीकार करने के पूर्व हिन्दू ही थे। इनके पुरखे हिन्दू धर्म में अगाघ निष्टा रखते थे। इनकी रगों में हिन्दू संस्कृति का रक्त ही प्रवाहित होता है। उन पर इस्लाम की विदेशी अरबी संस्कृति एवं वहाबी विचारधारा कट्टरता से थोपी जाने के कारण उनकी वफादारी वैश्विक इस्लामी समस्याओं के साथ रहती है क्योंकि वे दुर्भाग्य से अपने पूर्वजों के बलात धर्म परिवर्तन के निर्मम इतिहास को नहीं जानते हैं।
इस्लाम में परिवर्तित होते ही उन्हें अरबी नाम, अरबी संस्कृति और अरबी रीति-रिवाज अपनाना पड़ता है। यहां तक कि उन्हें मक्का की ओर 5 बार मुहं करके ईश्वर प्रार्थना करते हुए उस देश के प्रति श्रद्धा प्रगट करनी होती है। संक्षेप में, धर्मांतरण के साथ- साथ राष्ट्रान्तरण भी हो जाता है।
इस्लाम, धर्मान्तरित लोगों को अपनी मूल देश की मिट्टी, संस्कृति, सभ्यता और इतिहास से जड़ से नष्ट कर देता है और उनके ऊपर बलात इस थोपी गई कृत्रिम अरबी संस्कृतिक पहचान के फलस्वरूप कई पीढ़ियों तक सामाजिक उथल-पुथल और अशान्ति पैदा हो जाती है।
तस्लीमा नसरीन के शब्दों में समस्या इस्लामी कट्टरवाद की नहीं, बल्कि स्वयं इस्लाम की है। मुसलमानों और इस्लाम के बीच के अन्तर को समझना आवश्यक है। दोनों एक जैसे नहीं हैं। वास्तव में सामान्य मुसलमान कट्टरवादी वहाबी विचारधारा के शिकार हैं।
हमें उदार मुस्लिम बुद्धिजीवियों को भी प्रोत्साहित करना होगा कि वे मुस्लिम समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और दकियानूसी प्रथाओं को दूर करने की पहल करें। विशेषकर 7 वीं शताब्दी के काफिर-मोमिन, जिहाद, दारूल-हर्ब और दारूल-इस्लाम की अवधारणओं से मुस्लिम समाज बाहर निकले। आज हम सब सहअस्तित्व के युग में प्रवेश कर गये हैं, जिसका अर्थ है - जिओ और जीने दो।
अतः हिन्दू पूर्वजों के मतान्तरित भारतीय मुसलमानों को चाहिए कि वे ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, दुराचार, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार, हत्या, ब्लात्कार व जिहाद सम्बन्धित सभी मध्ययुगीन आयतों को नकार दें।
अरबी संस्कृति का परित्याग करे व भारतीय संस्कृति को अपनाए। भ्रातृभाव से मिलजुल कर राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करें। क्योकि राष्ट्र, भाषा और धर्म से बड़ा है।