🌹गुलबकावली🌹

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 ♦️आज की कहानी♦️


🌹गुलबकावली🌹

(ज्ञान प्रद कथा )

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गुलबकावली एक काल्पनिक, विशेष स्वर्णिम पुष्प है जो कि पूर्णिमा के दिन देवलोक की स्वर्णिम झील में पूर्णतथा खिलता है। यह बहुत ही सुन्दर और सुगन्धित होता है । इन्द्रदेव की पृत्री, गुलबकावली के पुष्पों से जगदम्बा को अलंकृत करती है। इस पुष्प की विशेषता यह है कि अन्धे व्यक्ति की आँख पर इसे लगाने से उसे पुन: दृष्टि प्राप्त हो जाती है। मनुष्य लोक में एक बार शिव भक्‍त राजा प्रचण्ड के पुत्र ने देवलोक से यह पुष्प लाकर अपने पिता की आँखों पर रखा तो उन्हें खोई हुई दृष्टि पुनः प्राप्त हो गयी।


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अवन्तीनगर का राजा प्रचण्ड और महारानी प्रतिदिन शिव भगवान का अभिषेक कर राज्य संचालन करते थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी थी। कई वर्षों तक सन्तान न होने के कारण राजा ने रूपवती नामक कन्या से पुनः विवाह किया जिससे तीन पुत्रों का जन्म हुआ। ये तीनों पुत्र मूर्ख और बुद्धिहीन थे। प्रथम रानी सन्तान प्राप्ति के लिए शिव आराधना में ही व्यस्त रहने लगी। कुछ दिनों पश्चात्‌ उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम विजय रखा गया।

दूसरी रानी को ईर्ष्या होने लगी क्योंकि प्रथम रानी के पुत्र विजय के कारण उसके लड़कों को राज्य-अधिकार प्राप्ति की सम्भावना नहीं रहेगी। इसलिए दूसरी रानी ने अपने भाई वक्रकेतु के साथ मिलकर एक योजना बनाई। उसने ज्योतिषियों के द्वारा राजा को बहकाया कि विजय को राज्य से बाहर छोड़ दिया जाये | यदि नहीं छोड़ा गया तो उसके रहने से राजा नेत्रहीन हो जायेंगे। राजा को इच्छा न होते हुए भी बच्चे को जंगल में छोड़ना स्वीकार किया, लेकिन वक्रकेतु और उसकी बहन ने सैनिकों को जंगल में बच्चे को मारने के लिए कहा। सिपाहियों ने जंगल में विजय को मारने के लिए तलवार निकाली तो तलवार पुष्पहार बन गयी । पैरों से कुचलकर मारना चाहा तो पैर शक्तिहीन हो गये। अन्त में शिव जी ने एक मुनि के रूप में आकर विजय को एक गड़रिये के हाथ सौंप दिया व उसकी पालना करने का आदेश दिया। दिन-प्रतिदिन विजय बुद्धिमान एवं चतुर होने लगा एवं सर्व विद्याओं में निपुण हो गया।

उधर राजभवन में वक्रकेतू ने योजना बनाई कि किसी भी तरह राजा को अन्धा बनाकर स्वयं राज्य करे। इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए उसने राजा को, शिकार करने के लिए जंगल जाते समय दूध में एक तरह की दवा मिलाकर पिला दी। धीरे-धीरे राजा की दृष्टि कम होती गई और ठीक उसी समय जब वह पूरा अन्धा होने वाला था, उसके सामने विजय दिखाई दिया। इसके तुरन्त बाद ही राजा अन्धा हो गया। राजा ने विजय को पहचान लिया कि यही उसका बेटा है। विजय को भी माँ द्वारा सम्पूर्ण रहस्य मालूम हुआ।

एक बार विजय अपने माता-पिता से मिलने जब छिपकर महल में पहुँचा तो वहीं उसे मालूम हुआ कि देवलोक से गुलबकावली पुष्प लाकर पिता की आँखों पर रखने से उन्हें पुन: दृष्टि प्राप्त हो सकती है। विजय ने गुलबकावली पुष्प लाने के लिए प्रस्थान किया।

रास्ते में एक शहर में युक्तिमति नामक एक युवती रहती थी। वो बहुत लोगों को जुए के खेल में हराकर अपने पास बन्दी बनाकर रखती थी। शर्त यह थी कि जो उसे हरायेगा युक्तिमति उसी से शादी करेगी। वास्तव में वह अपनी युक्ति से ही खेल में जीत पाती थी। इस खेल के बीच में एक बिल्ली के सिर पर दीपक रख उसके आगे चूहा छोड़ा जाता था जिसे पकड़ने के प्रयास में बिल्ली दौड़ती थी तो दीपक नीचे गिर जाता था एवं अंधेरा हो जाता था। अंधेरे में वह युवती खेल को अपने पक्ष में कर सभी को हराती थी। विजय ने युक्तिमति की यह युक्ति पहचानकर उससे खेलने के लिए एक बूढ़े व्यक्ति के वेष में जाकर उसे हरा दिया और शर्त के अनुसार उससे विवाह कर लिया।

विजय, गुलबकावली का फूल लाने के लिए पूर्णिमा के दिन देवलोक पहुँचा। वहाँ स्वर्णिम झील में खिले हुए गुलबकावली के पुष्प उसे दिखाई दिये। उन पुष्पों को मनुष्य लोक तक लाने हेतु विजय को अनेक विघ्नों का सामना करना पड़ा। अन्त में विजय ने पुष्प को पिता की आँखों पर रख उन्हें पुनः दृष्टि प्राप्त करायी एवं राजद्रोही वक्रकेतु का संहार किया। विजय का युवराज के रूप में राज्य दरबार में अभिषेक हुआ।


आध्यात्मिक भाव: – जैसे अन्धे व्यक्ति को गुलबकावली पुष्प द्वारा दृष्टि प्राप्त होने का प्रसंग कहानी में स्पष्ट किया गया है वैसे ही वर्तमान समय चारों ओर व्याप्त अज्ञान अंधकार एवं विकारों के वशीभूत हुए  नेत्रहीन मानव पुन: सनातन धर्म का चिंतन करते हुए ज्ञान रूपी वैदिक संस्कृति के पुष्पों द्वारा ज्ञान का तीसरा नेत्र प्राप्त कर रहे हैं। जैसे राजकुमार को गुलबकावली पुष्प लाने के लिए अनेक विघ्नों का सामना करना पड़ा वैसे ही आत्मायें जब ज्ञानमार्ग पर चलती हैं तो पांच विकारों रूपी माया बिल्ली अनेक प्रकार के विघ्न डालती है तथा सम्पूर्ण ज्ञानी और योगी बनने नहीं देती परन्तु निर्भयतापूर्वक विघ्नों का सामना कर एक वैदिक संस्कृति पर दृढ़ निश्चय रख आगे बढ़ने वाले स्वतःही ज्ञान नेत्र प्राप्त कर अन्य आत्माओं को भी नेत्र प्रदान कराते हैं। उपर्युक्त कहानी में जैसे कहा गया है कि खेल के बीच में बिल्ली के हस्तक्षेप के कारण कई व्यक्ति हार गये वैसे ही ज्ञानमार्ग में माया रूपी बिल्ली भी आत्मा की ज्योति बुझाकर निर्णय-शक्ति को समाप्त कर देती है। माया के प्रभाव को समझकर विजयी बनने वाले ही बुद्धिवान, ज्ञानी और योगी  हैं। जैसे राजकुमार ने राजद्रोही का संहार कर युवराज पद प्राप्त किया वैसे हमें भी हमारे वैदिक धर्म को प्रचारित करते हुए  विधर्मियों बहिष्कार करते हुए रामराज्य की स्थापना वैदिक भारत का सपना साकार करना चाहिए 🙏🙏

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