धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज

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धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो - आज इस उदघोष बिना सनातन मतावलंबियों का कोई अनुष्ठान पूरा नहीं होता। नई पीढ़ी में ज्यादातर लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं कि इस उद्घोष की रचना प्रतापगढ़ की माटी से निकले महान संत स्वामी करपात्री जी महाराज ने की थी। "मंगलवार 10 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि" है और उनके अनुयायी इस दिन उनका भावपूर्ण स्मरण करेंगे।

स्वामी करपात्री का जन्म वर्ष 1907 में श्रावण मास, शुक्ल पक्ष, द्वितीया को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के भटनी ग्राम में सनातनधर्मी सरयूपारीण ब्राह्मण रामनिधि ओझा व शिवरानी के आंगन में हुआ था। 

बचपन में उनका नाम हरि नारायण रखा गया था। धर्मसम्राट के नाम 

ख्यातिप्राप्त करपात्री महाराज ने  1926 में ब्रह्मचर्य व्रत की दीक्षा लेकर हरिद्वार चले गए। एक साल बाद हिमालय पर तपस्या की। इसके बाद संन्यास ग्रहण कर लिया। शहर के लोगों की मानें तो वर्ष 1931 में दंड ग्रहण कर स्वामी हरिहरानंद सरस्वती कहलाए। 1940 में धर्मसंघ की स्थापना की और इसका मुख्यालय वृंदावन बनाया।

बर्तन का त्याग करने पर बन गए करपात्रीस्वामी हरिहरानंद सरस्वती ने संस्कृत महाविद्यालय में साधना के दौरान पात्र (बर्तन) का त्याग किया। वे कर (हाथों) में लेकर भोजन आदि ग्रहण करते थे। यहीं से उनका नाम करपात्री महाराज पड़ा। 1974 में सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया।

इंदिरा गांधी को श्राप

1965 में भारत के लाखों संतों ने गोहत्याबंदी और गोरक्षा पर कानून बनाने के लिए एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया गया था। 1966 में अपनी इसी मांग को लेकर सभी संतों ने दिल्ली में एक बहुत बड़ी रैली निकाली। उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। गांधीवादी बड़े नेताओं में विनोबा भावे थे। विनोबाजी का आशीर्वाद लेकर लाखों साधु-संतों ने करपात्रीजी महाराज के नेतृत्व में बहुत बड़ा जुलूस निकाला।

इंदिरा गांधी स्वामी करपात्रीजी और विनोबाजी को बहुत मानती थीं। इंदिरा गांधी के लिए उस समय चुनाव सामने थे। कहते हैं कि इंदिरा गांधी ने करपात्रीजी महाराज से आशीर्वाद लेने के बाद वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्लखाने बंद हो जाएंगे, जो अंग्रेजों के समय से चल रहे हैं।

इंदिरा गांधी चुनाव जीत गईं। ऐसे में स्वामी करपात्री महाराज को लगा था कि इंदिरा गांधी मेरी बात अवश्य मानेंगी। उन्होंने एक दिन इंदिरा गांधी को याद दिलाया कि आपने वादा किया था कि संसद में गोहत्या पर आप कानून लाएंगी। लेकिन कई दिनों तक इंदिरा गांधी उनकी इस बात को टालती रहीं। ऐसे में करपात्रीजी को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा।

लेकिन सत्ता के मद में चूर इंदिरा गांधी ने निहत्ते करपात्री महाराज और संतों पर गोली चलाने के आदेश दे दिए। पुलिसकर्मी पहले से ही लाठी-बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने लाठी और अश्रुगैस चलाना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने संतों और गोरक्षकों की भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। संसद के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई। लोग मर रहे थे, एक-दूसरे के शरीर पर गिर रहे थे और पुलिस की गोलीबारी जारी थी। माना जाता है कि एक नहीं, उस गोलीकांड में सैकड़ों साधु और गोरक्षक मर गए। दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया। संचार माध्यमों को सेंसर कर दिया गया और हजारों संतों को तिहाड़ की जेल में ठूंस दिया गया।

करपात्रीजी का श्राप इस घटना के बाद स्वामी करपात्रीजी के शिष्य बताते हैं कि करपात्रीजी ने इंदिरा गांधी को श्राप दे दिया कि जिस तरह से इंदिरा गांधी ने संतों और गोरक्षकों पर अंधाधुंध गोलीबारी करवाकर मारा है, उनका भी हश्र यही होगा। कहते हैं कि संसद के सामने साधुओं की लाशें उठाते हुए करपात्री महाराज ने रोते हुए ये श्राप दिया था।

'कल्याण' के उसी अंक में इंदिरा को संबोधित करके कहा था- 'यद्यपि तूने निर्दोष साधुओं की हत्या करवाई है फिर भी मुझे इसका दु:ख नहीं है, लेकिन तूने गौहत्यारों को गायों की हत्या करने की छूट देकर जो पाप किया है, वह क्षमा के योग्य नहीं है। इसलिए मैं आज तुझे श्राप देता हूं कि 'गोपाष्टमी' के दिन ही तेरे वंश का नाश होगा। आज मैं कहे देता हूं कि गोपाष्टमी के दिन ही तेरे वंश का भी नाश होगा।' जब करपात्रीजी ने यह श्राप दिया था तो वहां प्रमुख संत 'प्रभुदत्त ब्रह्मचारी' भी मौजूद थे। कहते हैं कि इस कांड के बाद विनोबा भावे और करपात्रीजी अवसाद में चले गए।

इसे करपात्रीजी के श्राप से नहीं भी जोड़ें तो भी यह तो सत्य है कि श्रीमती इंदिरा गांधी, उनके पुत्र संजय गांधी और राजीव गांधी की अकाल मौत ही हुई थी। श्रीमती गांधी जहां अपने ही अंगरक्षकों की गोली से मारी गईं, वहीं संजय की एक विमान दुर्घटना में मौत हुई थी, जबकि राजीव गांधी लिट्‍टे द्वारा किए गए धमाके में मारे गए थे। 


07 फरवरी 1982 ई. को रविवार चतुर्दशी को पुष्यनक्षत्र में गंगास्नानोपरान्त करपात्रीधाम स्थित वेदानुसन्धान केन्द्र के कक्ष में शिव-शिव-शिव नामोच्चारण पूर्वक ब्रह्मलीन तथा 09 फरवरी 1982 को केदारघाट पर श्री गंगामहारानी की गोद में पार्थिव देह पुरी पीठाधीश्वर श्री स्वामी निरंजनदेव तीर्थ द्वारा पत्थर की पेटिका में जलसमाधि दी गयी।


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