बात नाराजगी की नहीं,, होश की है
कोई एक मरीज हो,कोमा में पड़ा हो या बेहोश हो बीस पचास साल से,,वहां वार्ड बाय या नर्स या डॉ या अन्य कोई जो यह कह रहा हो कि मैं इसे जगा रहा हूँ होश में ला रहा हूँ और उसके मुंह पर थूकता रहे,उसके खाने में जहर मिलाता रहे।
फिर कुछ ऐसा हो कि व्यक्ति होश में आने लगे धीरे धीरे,थूकना तो उसे अब भी दिख रहा है लेकिन मना करने की शक्ति नहीं शरीर में,फिर थोड़ा और स्वस्थ हो और मना करने लगे कि अब नहीं थूकने दूंगा अपने मुँह पर,नहीं ग्रहण करूंगा विष मिला भोजन।
तब डॉ या नर्स या वार्डबॉय जो कह रहा था कि हम इसे जगा रहे हैं,होश में ला रहे हैं वे सब एकसाथ चिल्लाने लगें की बड़ा नफरत का दौर है,व्यक्ति बड़ा असहनशील है,प्रतिकार कर रहा है यानी बड़ा हिंसक है,जहर मिला भोजन नहीं स्वीकार रहा है यानी क्रूर है सहअस्तित्व में विश्वास नहीं कर रहा है,भाईचारे को तहस नहस कर रहा है।
कुछ ऐसा ही हुआ है भारतीय समाज के साथ,भारतीय कहना सही नहीं क्योंकि भारतीय में तो सभी मत पंथ हैं,कुछ ऐसा ही हुआ है पिछले तीस चालीस साल से सिनेमा के नाम पर हिंदुओं के साथ,यह कहकर की फिल्में हमें जगा रही हैं, हमें सीखा रही हैं, ये समाज का आईना हैं, फला फला।
अब चूंकि मरीज कोमा से निकल आया है और थोड़ी बहुत ताकत प्रतिकार की भी हो गई है,तो तमाम स्टाफ बिलबिला रहा है कि मरीज नफरती है।
अरे भाई मरीज नफरती नहीं है, नफरत तुमने देखी ही कहाँ है अभी,हमारे यहां पूर्वज उसे नफरत नहीं मन्यु कहते हैं,, विवेकपूर्वक क्रोध,यानी दोषी को उसके दोष की न्यायपूर्ण सजा देना,, बिना उससे द्वेष किए,, वह सजा तो अभी तुम्हें देनी बाकी है, सब्र करो उसका भी नम्बर आएगा।
फिलहाल तो अभी धीरे धीरे होश में आया समाज सिर्फ इतना ही कह रहा है गटरवुड रूपी हितैषी को कि प्लीज हमारे हित के लिए इतने चिंतित न होओ,हमारे मुँह पर अब और न थूको, और मिलावट का जहर एजेंडे के थ्रू न परोसो।
यह नफरत नहीं है जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है,, यह आत्मरक्षा है तुम्हारे जहर से तुम्हारे थूक से,फिर जब शसक्त होंगे तब पलटकर जवाब भी दिया जाएगा, इसलिए अभी सिर्फ प्रतिकार, बायकॉट गटरवुड, बायकॉट भांडवुड,, बायकॉट थूकवुड,,बायकॉट नशेड़ीवुड,बॉयकाट जेहादीवुड।
आदिपुरुष भी इसी एजेंडे को ध्यान में रखकर आपके मुंह पर थूका गया पीक है,तुम राम के चक्कर में न फंसना, जेहादी मानसिकता के तहत रावण ही भेष बदलकर आ रहा है।
राम हृदय में रखना,गली नुक्कड़ में होती रामलीलाओं में देखना, सम्बोधन में जीवित रखना,रामायण ग्रन्थ का स्वाध्याय करना
टिकट के पैसे इक्कठे करके सुंदरकांड करवा लेना गली घर में।
लेकिन थियेटर में मुँह पर थुकवाने मत जाना,मनोरंजन के लिए इरानियन सिनेमा है न,हॉलिवुड है न,जापानी सिनेमा भी बेहतरीन है,कोरियाई भी ठीक ठाक है,हजारों रास्ते हैं खुले हुए,,
जबर्दस्ती अपनी ओर अपने महापुरुषों अपने देवों की इज्जत उतरवाने मत जाना भाई इतना ही निवेदन है।
कुत्तों को कुछ समझा रहा हूँ तो वे भी ध्यान से देख समझ रहे हैं,, गटरवुड,, भांडवुड कुत्तों से भी नीचे गिर गया है भाई,,उन्हें समझाने का एक ही शसक्त तरीका है-- *बहिष्कार*