🏟️लोभका कुआं

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 ♦️आज की प्रेरणादायक♦️


       •□□लोभका कुआं□□•

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एक बार राजा भोज के दरबार में एक सवाल उठा कि ऐसा कौन सा कुआं है जिसमें गिरने के बाद आदमी बाहर नहीं निकल पाता?


 इस प्रश्न का उत्तर कोई नहीं दे पाया। 


आखिर में राजा भोज ने राज पुरोहित से कहा कि इस प्रश्न का उत्तर सात दिनों के अंदर लेकर आओ, वरना आपको अभी तक जो इनाम धन आदि दिया गया है,वापस ले लिए जायेंगे तथा इस नगरी को छोड़कर दूसरी जगह जाना होगा।


छः दिन बीत चुके थे। राज पुरोहित को जबाव नहीं मिला था। निराश होकर वह जंगल की तरफ गया। वहां उसकी मुलाकात एक चरवाहे से हुई। 


चरवाहे ने पूछा - आप तो राज पुरोहित हैं, राजा के दुलारे हो फिर चेहरे पर इतनी उदासी क्यों?


यह चरवाहा मेरा क्या मार्गदर्शन करेगा ? ये सोचकर पुरोहित ने कुछ नहीं कहा। 


इस पर चरवाहे ने पुनः उदासी का कारण पूछते हुए कहा - पुरोहित जी, हम भी सत्संगी हैं,हो सकता है आपके प्रश्न का जवाब मेरे पास हो, अतः नि:संकोच कहिए। 


उसके बाद राज पुरोहित ने प्रश्न बता दिया और कहा कि अगर कल तक प्रश्न का जवाब नहीं मिला तो राजा नगर से निकाल देगा।


चरवाहा बोला - मेरे पास एक पारस है , उससे खूब सोना बनाओ। एक राजा भोज क्या लाखों भोज आपके पीछे घूमेंगे। बस,पारस देने से पहले मेरी एक शर्त माननी होगी कि आपको मेरा शिष्य बनना पड़ेगा ।


राज पुरोहित के अंदर पहले तो अहंकार जागा कि दो कौड़ी के मामूली चरवाहे का शिष्य बनूं?


 लेकिन स्वार्थ पूर्ति हेतु वे शिष्य बनने के लिए तैयार हो गए ।


चरवाहा बोला - पहले भेड़ का दूध पीओ फिर शिष्य बनो।


राज पुरोहित ने कहा कि यदि मैं भेड़ का दूध पियूंगा तो मेरी बुद्धि मारी जायेगी। मैं दूध नहीं पीऊंगा। 


तो जाओ, मैं पारस नहीं दूंगा - चरवाहा बोला।


राज पुरोहित बोला - ठीक है,दूध पीने को तैयार हूं,आगे क्या करना है?


चरवाहा बोला- अब तो पहले मैं दूध को जूठा करूंगा फिर आपको पीना पड़ेगा।


राज पुरोहित ने कहा - तू तो हद करता है! पुरोहित को जूठा पिलायेगा?


तो जाओ, चरवाहा बोला।


राज पुरोहित बोले- मैं तैयार हूं जूठा दूध पीने को ।


चरवाहा बोला- वह बात गयी। अब तो सामने जो मरे हुए जानवर की खोपड़ी का कंकाल पड़ा है, उसमें मैं दूध दुहुंगा ,उसको झूठा करूंगा, कुत्ते को चटवाऊंगा फिर आपको पिलाऊंगा।तब मिलेगा पारस। नहीं तो अपना रास्ता लीजिए।


राज पुरोहित ने खूब विचार कर कहा- है तो बड़ा कठिन लेकिन मैं तैयार हूं।


चरवाहा बोला- महाराज, मिल गया आपको जवाब। यही तो कुआं है लोभ का, तृष्णा का जिसमें आदमी गिरता ही जाता है और फिर कभी नहीं निकलता। जैसे कि आप ख़ुद पारस को पाने के लिए इस लोभ रूपी कुएं में गिरते चले गए।


उसके बाद राज पुरोहित ने दरबार में अपने उत्तर से राजा भोज को संतुष्ट किया ।


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